________________ 26 ] बृहत्संग्रहणीरत्न हिन्दी * [ गाथा 3-4 AAAAAAAAAM समय बीता होता है तो कल्पना करो कि उस जीर्णवस्त्र को पूरा फटने में कितना समय बीता होगा? अथवा दूसरी तरहसे सोचे तो सैकड़ों कमलके पत्रोंको कोई बलवान् पुरुष स्वसामर्थ्यसे तीक्ष्ण-भाला उठाकर उन सौ पत्रोंको एक साथ छेद डाले, उसमें वह भाला एक पत्तेको छेदकर दूसरे पर्णमें गया, उतनेमें असंख्यात समय चला जाता है। तब छेदनेवालेको स्थूला से ऐसा ही लगता है कि मैंने एक ही साथमें पत्र छेद किया, परन्तु सूक्ष्मदृष्टिवाले सर्वज्ञ उसमें असंख्यात समय व्यतीत हुआ है, ऐसा ज्ञानसे जान लेते हैं / ऐसा सूक्ष्मसे सूक्ष्म काल वह समय है। पूर्व कथित वर्णनवाले समय चौथे जघन्ययुक्त असंख्याताकी संख्या जितने होते हैं, तब एक आवलिका होती है। ऐसी 256 आवलिका जितना आयुष्य सूक्ष्म-निगोदादि जीवोंका होता है, इससे अल्प आयुष्य किसी भी जीवका होता ही नहीं है। इस कारण 256 आवलिका जितना काल एक क्षुल्लक-भवरूप आँका जाता है। एक मुहूर्तमें ऐसे 65536 क्षुल्लक भव होते हैं, क्योंकि एक मुहूर्तमें 301,67,77,216 आवलिकाएँ होती हैं। 4446 3451 आवलिका जितना काल एक प्राण या श्वासोच्छ्वास कहलाता है। यहाँ श्वासोच्छ्वास नीरोगी, सुखी तथा युवावस्थाको प्राप्त हो ऐसे पुरुषका लेना, परन्तु रोगी या दुःखी मनुष्यका श्वासोच्छ्वास नहीं लेना; क्योंकि उसके श्वासोच्छ्वास अनियमितरूपसे चलते होते हैं। ___उच्छ्वासको ऊर्ध्वगमनशील और नीचे रखने पर अधोगमनशील ३२निःश्वास समझना। यह उच्छ्वास और निःश्वास दोनों मिलकर प्राण [ श्वासोच्छ्वास ] होता है। [ इस एक श्वासोच्छ्वासमें अथवा एक प्राणमें 17 से अधिक 17 335. क्षुल्लक भव होते हैं।] ऐसे सात प्राण जितने कालको 1 स्तोक कहा जाता है, ऐसे 7 स्तोंकोंसे [49 प्राणोंसे ] 1 लव होता है। ऐसे 77 लव हों तब 1 मुहूर्त हुआ कहा जाता है। ये मुहूर्त 30. उक्तं च-एगा कोडी सतसट्ठी लक्खा सत्तहुत्तरी सहस्सा य / दोय सया सोलहिया आवलिया इग मुहुत्तम्मि // 31; 'हट्टस्स अणवगल्लम्स, निरुवकिट्ठस्स जंतुणो / _एगे उसास नीसासे एस पाणुत्ति बुच्चई // 32. 'सोऽन्तर्मुख उच्छ्वास: ' 'बहिर्मुखस्तु निःश्वासः' / [ हैमकोष] 33. कालका विशेष वर्णन 'तंदुलवैचारिक, काललोक, जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति, ज्योतिषकरंडक' इत्यादि ग्रन्थोंमें विस्तारसे दिया है / जिज्ञासु वहाँ देखे /