Book Title: Sammedshikhar Mahatmya
Author(s): Devdatt Yativar, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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प्रथमा
श्लोकार्थ - कवि भावना कर रहा है कि भट्टारक पद पर सुप्रतिष्ठित
सुकवियों में श्रेष्ठ वे जिनेन्द्र भूषणयति मेरे इस सम्मेदाचल अर्थात् शिखरजी के माहात्य वर्णन में मुझे संसार रूपी समुद्र से पार लगाने के लिये इस उत्तम कथा को धारण करने वाली मेरी बुद्धि रूपी नाव के नाविक हों अर्थात् जैसे नाविक नाव को सुरक्षित अपने गन्तव्य तक पहुंचा देता है वैसे ही आप
भी मेरी बुद्धि रूपी नाव के संरक्षक व पथप्रदर्शक बनें । माहात्म्यपूर्तिसिद्ध्यर्थं वन्दे सिद्धगणं हृदि ।
सबुद्धिं ते प्रयच्छन्तु वाणी मे काव्यरूपिणीम् ।।५।। अन्वयार्थ - (अहं - मैं), माहात्म्यपूर्ति सिद्ध्यर्थं = सफ़ेदशिखरमाहात्म्य
वर्णन की पूर्ण लिख के लिये. सिद्धगण -- सिद्ध भगवानों के समूह को, हृदि = हृदय में, (निधाय = धारण कर), वन्दे = उनकी वन्दना करता हूं, ते = सिद्ध भगवन्त, मे = मेरे लिये, सद्बुद्धिं = सदबुद्धि को, काव्यरूपिणी वाणी च = और काव्य स्वरूप वाली वाणी अर्थात् वचन सामर्थ्य को, प्रयच्छन्तु
= प्रदान करें। श्लोकार्थ - मैं अपने इस कान्य सम्मेदशिखरमाहात्म्य वर्णन को पूर्ण करने
के लिये सिद्ध परमेष्ठी मंडल को अपने हृदय में रखकर उन्हें नमन करता हूं तथा प्रार्थना करता हूं कि वे मुझे सद्बुद्धि दें तथा मेरी वाणी को इस कथा को काव्य रूप प्रदान करने
की शक्ति प्रदान करें। सम्मेदशैलवृत्तान्तो महावीरेण भाषितः । गौतम प्रति भूयः स लोहाचार्येण धीमता ।।६।। तत्सद्वाक्यानुसारेण देवदन्ताख्यसत्कविः ।
सम्मेदशैल माहात्म्यं प्रकटीकुरूते धुना ।।७।। अन्वयार्थ - (यः = जो), सम्मेदशैलवृत्तान्तः = सम्मेदाचल का वर्णन.
महावीरेण = भगवान् महावीर द्वारा, गौतमं प्रति = गौतमगणधर के सम्मुख, भाषितः = कही, (आसीत् = थी),