________________ पृष्ठांकः विषयः पृष्ठांकः विषयः 568 क्रियाहेतुगुणत्वाव-इस हेतु की समीक्षा 588 दर्शनादिव्यवहार से विपरीत कल्पना में 566 अन्यत्र वर्तमान अदृष्ट की हेतुता अनुपपन्न बाधप्रसंग 570 अचल अदृष्ट से आकर्षण को अनुपपत्ति / 586 देदमात्रव्यापी आत्मसाधक अनुमान में बाध दोष का निरसन 571 क्रिया का कारण अयस्कान्त का स्पर्शादि 560 आहार कवल के दृष्टान्त में साध्य-शून्यता गुण ही है। 591 आत्मा के गुण देह से अन्यत्र उपलब्ध नहीं होते 572 अयस्कान्त से लोहाकर्षण में अदृष्टहेतुता 562 देह में प्रात्मा को संकुचित वृत्ति मानने में का निरसन बाधक 573 अदृष्ट को पूरे प्रात्मा में मानने पर आपत्ति | 563 आत्मा में नश्वरता की आपत्ति नहीं 573 अदृष्ट में गुणत्वसाधक हेतु में संदिग्ध-साध्यद्रोह | 594 क्रियादिकम से द्रव्य नाश की प्रक्रिया का 574 अञ्चन और प्रयत्न दोनों स्थल में अन्य की निरसन कारणता समान | 565 मुक्तिस्वरूप मीमांसा 575 न्यायमत में देवदत्त शब्द के वाच्यार्थ को | 565 प्रात्मा को मुक्तावस्था कैसी है ? अनुपपत्ति | 565 विशेषगुणोच्छेदस्वरूपमुक्ति-नैयायिक 576 शरीरसंयुक्त प्रात्मप्रदेशों को 'देवदत्त' नहीं | 566 मुक्ति का हेतु तत्त्वज्ञान कह सकते 596 उपभोग से ही कर्मविनाश की उपपत्ति 576 अन्य अन्य प्रात्मप्रदेश मानने में अनवस्था | 567 तत्त्वज्ञानी की भी भोग में प्रवृत्ति युक्तियुक्त दोष | 568 नित्यनैमित्तिक अनुष्ठान का प्रयोजन 577 सर्वत्र उपलभ्यमानगुणत्व हेतु विरुद्ध या | 568 मुक्ति परमानन्दस्वरूप-वेदान्तपक्ष असिद्ध | 600 मुक्तिसुखवादिवेदान्तपक्ष का निरसन 578 आत्मा में मूर्तत्व की आपत्ति का निरसन | 601 नित्यसुखसंवेदन में प्रतिबन्ध की अनुपपत्ति 579 सक्रियता के द्वारा मूर्त्तत्व की सिद्धि दुष्कर | 602 अनित्य सुखसंवेदन को मुक्ति में अनुपपत्ति 580 सक्रियता के द्वारा अनित्यत्व की आपत्ति का 502 मुमुक्षु की प्रवृत्ति इष्टप्राप्ति के लिये या निरसन अनिष्टत्याग के लिये? 581 विभुत्व के द्वारा आत्मा में महत परिमाण 603 अनिष्टाननुषक्त इष्ट का सद्भाव नहीं होता की सिद्धि दुष्कर 604 आगम से नित्यसुख की सिद्धि अशक्य 581 आत्मविभुत्साधक पूर्वपक्षी के अनुमान की 604 दुःखाभावार्थक प्रवृत्ति मानने में मोक्षाभाव असारता की आपत्ति त्रिव्यापक आत्मा स्वसंवेदनसिद्ध 606 रमणीय विषयों से सुख विशेष की सिद्धि 582 अविभुत्वसाधक प्रमाण का अभाव नहीं 606 अभिलाषनिवृत्ति द्वारा सुखानुभव की शंका 583 हेतु में असिद्धता का उद्भावन-पूर्वपक्ष 606 भोग से इच्छा निवृत्ति अशक्य 584 देवदत्त के गुणों को अन्यत्र सत्ता असिद्ध- 607 अभिलाषतीव्रता से तीव्रसुखाभिमान की . उत्तरपक्ष शंका गलत 584 धर्माधर्म आत्मा के गुण नहीं है 607 दु.खाभाव अर्थ में भी सुख शब्द का प्रयोग५८५ धर्माधर्म स्वसंविदित ज्ञानरूप नहीं है नैयायिक 586 अचेतन धर्माधर्म का साधक प्रमाण 608 स्वप्रकाश वस्तु के आवरण की असंगति 587 प्राग्भवीय शरीरसम्बन्ध को आत्मा में सिद्धि | 606 मुमुक्षप्रवृत्ति द्वेषमूलक नहीं होती