Book Title: Samaysara Anushilan Part 02
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 7
________________ समझने की दृष्टि भी दी है। डॉ. भारिल्ल की सूक्ष्म पकड़ की तो पूज्य स्वामीजी भी प्रशंसा किया करते थे, पर उन्हें इसके लेखन में अथक् श्रम करते मैंने स्वयं अपनी आँखों से देखा है; क्योंकि इसे लिखे जाने का मैं प्रत्यक्ष साक्षी हूँ । उन्होंने जिसप्रकार प्रत्येक गाथा के मर्म को सहज बोधगम्य बनाया है, सप्रमाण प्रस्तुत किया है, सयुक्ति और सोदाहरण समझाया है; यह अपने आपमें अपूर्व है। मुझे पूरा-पूरा विश्वास है कि इससे अध्यात्मप्रेमी समाज को बहुत लाभ होगा। मेरे विश्वास को उन पत्रों से बल मिला है जो समय-समय पर हमें प्राप्त होते रहे हैं और जिन्हें वीतरागविज्ञान में यथासंभव प्रकाशित भी किया गया है। _ विदेशों से प्राप्त पत्रों से स्पष्ट है कि न केवल देश में अपितु विदेशों में भी इस अनुशीलन को पढ़ने की बड़ी उत्सुकता से प्रतीक्षा की जाती है और इसका विधिवत पठन-पाठन भी चल रहा है। _ 'वास्तव में यह ग्रंथ पूरा होने पर समाज को एक अमूल्य निधि प्राप्त होगी' - बाहुबली कुम्भोज की विदुषी बहिन सुश्री गजाबेन की उक्त पंक्तियाँ एक ऐतिहासिक तथ्य सिद्ध होंगी - ऐसा हमारा पूर्ण विश्वास है। __ प्रस्तुत कृति को अल्पमूल्य में उपलब्ध कराने का श्रेय उन महानुभावों को जाता है, जिन्होंने हमें आर्थिक सहयोग प्रदान किया है। हम सभी सहयोगियों का हृदय से आभार मानते हैं; साथ ही सुन्दर व शुद्ध मुद्रण के लिए जयपुर प्रिन्टर्स व प्रकाशन की सम्पूर्ण व्यवस्था सम्हालने हेतु विभाग के प्रभारी अखिल बंसल को धन्यवाद देते हैं। सभी आत्मार्थी भाई-बहिन इस कृति से भरपूर लाभ लें। इस मंगल भावना के साथ। - नेमीचन्द पाटनी महामंत्री

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