Book Title: Samaysar Vaibhav Author(s): Nathuram Dongariya Jain Publisher: Jain Dharm Prakashan Karyalaya View full book textPage 9
________________ भगवान कुदकुद स्वामी का नाम एव स्थान उनमे सर्वोपरि है, जिन्होने अब से करीब दोहजार वर्ष पूर्व प्राकृत भाषा मे मानव समाज को सुख शाति का वास्तविक सन्देश देकर उसका कल्याण किया है। उनके रच हए अनेक ग्रथो मे समयसार (समयप्राभृत) एक अपूर्व प्राध्यात्मिक कृति है, जिसमे प्राचार्य श्री ने अपने परिपूर्ण प्रात्म वैभव का उपयोग कर शुद्धात्मा का स्वरूप (हमारा वास्तविक रूप) अन्य तत्वों के साथ दर्शाकर हमें वह अपूर्व ज्योति प्रदान की है जिसने प्रकाश में प्रात्माका यथार्थ स्वरूप एक प्रकार से प्रत्यक्ष सा प्रतिभासित होने लगता है । इस ग्रंथ का प्रतिपाद्य विषय इतना गभीर और महान है कि जन साधारण तो दूर, कभी कभी जैनागम के विशिष्ट अभ्यासी विद्वज्जनो का भी उसका मर्म समझने में कठिनाई सी प्रतीत होने लगती है। शतान्दियो से गुरु परपरा के विच्छिन्न एव इस ग्रथ के पठन पाठन की शृखला : भग हो जाने के कारण उसके यथार्थ भाव को समझने में असुविधा का होना स्वाभाविक ही है । यही कारण है जो अपने पूर्व मताग्रह जन्य सकुचित विचारो मे उलझे रहने और नयो का यथार्थ ज्ञान न होने से हमारी तत्व चर्चा कभी २ वाद विवाद या विसवाद का रूप तक धारण कर लेती है। अमल में जैनगाम का क्रमिक अभ्यास बिना किये एव निष्पक्ष भाव मे प्रमाण, नय, निक्षेप तथा निश्चय-व्यवहार, निमित-उपादान, हेयोपादेय प्रादि के स्वरूप को ठीक से बिना समझे तत्त्वार्थ का यथार्थ परिशान करने के लिये समयसार का अध्ययन करना, एक प्रकार से तैरना सीखे बिना रत्न प्राप्ति हेतु समुद्र मे प्रवेश करने के समान है । इसके सिवाय बीतराग प्रणीत अनेकान्तात्मक वस्तु स्वरूप का स्वय समझ कर निष्पक्ष एवं बीतराग भाव से ही पात्र अपात्र का ध्यान रखकर दूसरो को समझाना भी नितान्त आवश्यक है, तब ही उसके द्वारा स्वपर कल्याण सम्भव है। इसीलिये ग्रन्थकार एवं टीकाकारो ने अनेक स्थलों पर इस विषय मे तत्व जिज्ञासुमों को सावधान भी किया है। श्रीमत्परमपूज्य अमृतचन्द स्वामी ने, जो ममयसार के टीकाकार भी है, अपने पुरुषार्थ सिद्धथुपाय नामक ग्रंथ की भूमिका मे लिखा है "व्यवहार निश्चयो यः प्रबद्ध तत्वेन भवति मध्यस्थः । प्राप्नोति देशनायाः स एव फलमविकलं शिष्यः ।" HTTAPage Navigation
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