Book Title: Samajonnayak Krantikari Yugpurush Bramhachari Shitalprasad
Author(s): Jyotiprasad Jain
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Digambar Jain Parishad

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Page 16
________________ 4. धर्म और समाज के उन्नायक - सन् 1857 के स्वातन्त्रय समर और 1647 में स्वतन्त्रता प्राप्ति के मध्य 6. वर्ष का काल भारत वर्ष के लिये एक अद्भुत जागृति सर्वव्यापी विकास एवं प्रगति का युग रहा है / इस काल में जीवन से सम्बन्धित विभिन्न क्षेत्रों में होने वाले आन्दोलनों. अभियानों क्रांतियों एवं परिवर्तनों ने देश और समाज की कायापलट कर दी और उन्हें प्राचीन युग से निकालकर माधुनिक युग में स्थापित कर दिया / जैन समाज अखिल भारतीय राष्ट्र एवं जनता का अभिन्न अंग रहा है, और है, तथापि अपनी कतिपय सांस्कृतिक एवं सामाजिक विशेषताओं के कारण उसने उक्त समष्टि के मध्य अपना निजी व्यक्तित्व भी अक्षुण बनाये रखा है / देश व्यापी राष्ट्रीय चेतना और विचार कांतियों से वह अछता नहीं रह सकता था, रहा भी नहीं / किन्तु उसके धार्मिक एवं सामाजिक जीवन में उक्त विचार क्रान्तियों के प्रभाव एवं प्रतिक्रियाएं उसकी स्वयं की संस्कृति और संगठन के अनुरूप हुई / इस समाज व्यापी जागति एवं उन्नयन के प्रस्तोता, पुरस्कर्ता, समर्थक एवं कार्यकर्ता भी इसी समाज में से उत्पन्न हुए और आगे आए / इस तदयुगीन जैन जागृति के अग्रदूतों की प्रथम पीढ़ी तो कभी की समाप्त हो गई, दूसरी भी प्रायः समाप्त ही है, तीसरी पीढ़ी के कुछ इने-गिने सज्जन अभी विद्यमान हैं, किन्तु उनमें अब पहले जैसा उत्साह रहा और न वैसी कार्यक्षमता / / "जैन-धर्म-भषण", "धर्मदिवाकर" संत प्रवर ब्र० शीतलप्रसाद जी आधुनिक युग में जैन जाति को जगाने और उठाने वाले कर्मठ नेताओं की दूसरी पीढ़ी के प्राण थे, और वह प्रथम पीढ़ी तथा तीसरी पीढ़ी के बीच की सम्भवतया सर्वाधिक महत्वपूर्ण कड़ी थे उसी प्रकार वह पुरातन पंथियों या स्थितिपालकों और प्रगतिशील आधुनिकतावादी या सुधारकों के बीच, पंडितवर्ग एवं बाबूवर्ग के बीच तथा साधुवर्ग एवं श्रावक वर्ग के बीच भी एक सुदृढ़ कड़ी का कार्य करते थे। . सन 1878 (सं० 1935) के कार्तिक मास में (संभवतया कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन) लखनऊ नगर में उसका जन्म हुआ था। अठारह वर्ष (6)

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