Book Title: Samajonnayak Krantikari Yugpurush Bramhachari Shitalprasad
Author(s): Jyotiprasad Jain
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Digambar Jain Parishad
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________________ 10 फरवरी, 1942 को प्रातः 4 बजे ब्रह्मचारी जी ने अन्तिम श्वांस लिया-शरीर शांत हो गया। अन्तिम श्वांस तक वह होश में रहे , आलोचना, प्रतिक्रमण, मृत्यु-महोत्सव आदि पाठ सुनते रहे, आध्यात्मिक मनन करते रहे और आत्मानुभवानन्द के सुखसागर में गोते लगाते हुए अन्तिम श्वांस के साथ परलोक सिधार गये। शव स्नान के उपरान्त उनका चन्दन-चचित शरीर हाथ की कती बनी केसरिया रंग की खादी में अविष्टित करके, अरथी पर खुले मुंह बैठाया गया। इस अवसर पर बाबू अजित प्रसाद जी ने एकत्रित जन समूह के समक्ष ब्रह्मचारी जी का गुणानुवाद किया और अपील की कि लखनऊ के नागरिकों का कर्त्तव्य है कि ब्रह्मचारीजी के स्मारक स्वरूप एक "शीतल होस्टल" या "शीतल छात्रालय" लखनऊ विश्वविद्यालय के निकट बनवायें। जय-जय शब्दोच्चारण के साथ उक्त धर्मशाला से यह विशाल शव यात्रा प्रारंभ हुई और आहियागंज, नखास, चौक बाजार, मेडिकल कालेज मार्ग से होती हुई डालीगंज बाजार के अन्तिम छोर पर स्थित जैनबाग में समाप्त हुई। अनगिनत जैन स्त्री-पुरुष तथा अनेक अजैन भी नगे पैर शवयात्रा में सम्मिलित थे / रास्ते भर "जैन धर्म भूषण व्र० शीतल प्रसाद जी की जय", "जैन धर्म की जय"," अहिंसा धर्म की जय", स्याद्वाद, अनेकान्त, कर्म सिद्धांत और मोक्ष मार्ग की जय की ध्वनियां गूंजती रहीं। दाह संस्कार जैन विधि पूर्वक ब्र. जी के भतीजे धर्मचन्द जी द्वारा किया गया। बा० अजित प्रसाद जी संस्कार विधि के पाठ पढ़ते जाते थे / दाह संस्कार के स्थान पर एक चबूतरा बना दिया गया। भारतवर्ष भर में शोक सभाएं हई, दि० जैन परिषद के अधिकारियों ने दिल्ली में "शीतल सेवा मंदिर" बनाने का प्रस्ताव पारित किया, मूलचन्द किशनदास कापड़िया ने "शीतल स्मारक ग्रन्थमाला" चलाने का निर्णय किया और पं० महेन्द्र कुमार न्यायाचार्य ने स्याद्वाद महाविद्यालय में "शीतल भवन" स्थापित करने का प्रस्ताव पास किया। खेद है कि इन योजनाओं में से एक भी कार्यान्वित न हो पाई / जिसके जीवन का एक-एक क्षण समाज के हित में समर्पित रहा, जो अंतिम रुग्णावस्था में भी लेख लिखाकर जैनमित्र आदि पत्रों में Y