Book Title: Samajonnayak Krantikari Yugpurush Bramhachari Shitalprasad
Author(s): Jyotiprasad Jain
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Digambar Jain Parishad

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Page 62
________________ व्याख्यान करते हुए दुख से रो पड़ते थे / ऐसे कर्मशूर सतत् जिनधर्म प्रभावनारत महान् पुरुष अब कहां हैं / पं. महेन्द्रकुमार न्यायाचार्य ब्रह्मचारी जी जैन धर्म व जैन समाज की सर्वतोमुखी उन्नति में जीवन का एक-एक क्षण लगाते थे / पं. चैनसुखवास न्यायतीर्थ जैन समाज के उत्थान के पुनीत कार्य में उन्होंने अपने को खपा दिया / उनकी दिन वयाँ सचमुच ही अनुकरणीय थी / पं० परमेष्ठीदास न्यायतीर्थ जैन समाज का ऐसा निःस्वार्थ हितचिन्तक मैंने आज तक नहीं देखा / समाज के लिये रोनेवाला वैसा महान् कर्मयोगी इस शती में अन्य नहीं हुआ / 7. पंडिता चन्दाबाई मारा में पंचकल्याणक प्रतिष्ठा के समय चालीस हजार रुपये का ध्रौव्य-कोष बाला-विश्राम के लिए ब्रह्मचारी जी की प्रेरणा से हो गया, जो अब करीब एक लाख का है / उसका श्रेय उन्हीं को है : वे जहां भी जाते शास्त्र भंडारों की व्यवस्था कराते थे / महिलारत्न ललिताबाई . "हमको और हमारी जैसी विधवाओं की सन्मार्ग में लगाने वाले, हम लोगों का जीवन सुधारने वाले आज इस लोक में नहीं रहे।" के० बी० मिनराज हेगड़े उनकी सरल बृत्ति और संयमी जीवन समस्त सार्वजनिक कार्यकर्ताओं के लिये उदाहरण है / इस भौतिक युग में वे जैनों और उनके धर्म के लिए जिये / 55

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