Book Title: Samajonnayak Krantikari Yugpurush Bramhachari Shitalprasad
Author(s): Jyotiprasad Jain
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Digambar Jain Parishad
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________________ 80 परोपकारी पुण्यात्मा ! बंबई पहुंचकर आपने जैन कुल-भषण दानवीर श्रीमान सेठ माणिकचन्द्र जी जौहरी जे० पी० के साथ धर्म-सेवा का कार्य आदर्श रूप में अथक परिश्रम से किया / सेठ जी की सुपत्री श्रीमती मगनबहेन को जैनधर्म में शिक्षित करके जैन महिलारत्न बना दिया और जैन महिला मंडल का अपूर्व उपकार किया / परम वात्सल्य गुणालंकृत महोदय ! जैन जगत से आपको बचपन ही से प्रेम रहा है। आपकी उदारता अद्वितीय है / समाज में आप ऐसे श्रावक रत्न हैं जिनको अपने नाम से संस्था स्थापित करने का प्रलोभन नहीं है। श्री स्याद्वाद्व महाविद्यालय काशी के आप संस्थापक सदस्य हैं और 30 साल से इस संस्था को सुरक्षित रखने में जितना परिश्रम आपने किया है शायद ही किसी और व्यक्ति ने किया हो / जितने दिगम्बर जैन होस्टेल, श्राविकाश्रम, जैन महिलाश्रम स्थापित हैं उन सवकी स्थापना में आपने मुख्य भाग लिया है और समस्त उपयुक्त भारतवर्षीय और इतर भारतीय जैन संस्थाओं को आप निरन्तर सहायता पहुँचाते रहते हैं / समय सार सागर में गोता लगाने वाले ! जैन समाज में एक आप ही ऐसे धर्म-भूषण हो जिनका सारा समय सामायिक, स्वाध्याय, शास्त्रोपदेश., देव-दर्शन, जिनेन्द्र पूजा, शास्त्र संपादन आदि धर्म ध्यान में ब्यतीत होता है, जिनको समय का मूल्य मालूम है, जिनका जीवन घड़ी की सुई की भांति समयबद्ध नियमित है और जो प्रतिवर्ष कम से कम एक नया जैन ग्रंथ अवश्य लिखकर प्रकाशित कर देते हैं / जैन मित्र का संपादन श्रीमान पंडित गोपालदास जी बरैया के पश्चात आपने ही किया और अब भी जैनमित्र में निरन्तर स्वान्दुभव शीर्षक लेख और अन्य लेख अधिक मात्रा में आपके लिखे हुए ही रहते हैं, यद्यपि अब आपके नाम का संबंध उसके संपादन विभाग से नहीं है /