Book Title: Samajonnayak Krantikari Yugpurush Bramhachari Shitalprasad
Author(s): Jyotiprasad Jain
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Digambar Jain Parishad

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Page 94
________________ 87 अमृत थी लेखनी तम्हारी, जिसने दिव्य ज्ञान बिखराया, जैन धर्म का सा तत्व सब, शब्दों में तमने समझाया / सत्य प्रेम की भाषा थे तुम, जन-मन की परिभाषा थे तुम, काव्य-सूर्य तुम थे मनभावन, ब्रह्मचारी हे शीतल पावन ! -डा. योगेन्द्रनाथ शर्मा 'अरुण' नहीं आप शीतलप्रसाद जी, इन आंखों के गोचर, हम सवसे संबंध छोड़कर, बसे स्वर्ग में जाकर, फिर भी उनके कार्य लोक में, अचल रहेंगे तब तक, मूर्य चन्द्र इत्यादि गगन में, फिरा करेंगे जब तक / -कविवर गुणभद्र जैन

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