Book Title: Samajonnayak Krantikari Yugpurush Bramhachari Shitalprasad
Author(s): Jyotiprasad Jain
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Digambar Jain Parishad
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________________ 91 सेठ मानकचंद जे० पी० का जीवन चरित्र लिखा था / महिलारत्न मगनबाई का जीवन परिचय लिखा था / सागर के चौमासे में श्रावकाचार ग्रन्थ की टीका लिखी थी : / इटारसी के चौमासे में न्यान समुच्चय सार ग्रंथ की टीका लिखी थी। ब्रह्मचारी जी निश्चय-व्यवहार के थे दृढ़ श्रद्धानी // 13 // कितने प्रभावशाली, प्रतिभावान समयोचित वक्ता थे / उनके समर्थक, पुजक भी अनेकों श्रद्धालु भक्त जन थे / / भट्रारकों की गद्दी के ब्रह्मचारी जी प्रबल विरोधी थे / वीसवीं सदी में जैन जाति में सुधारक संत थे / रेल, मोटर यातायात के लिये उन्होंने साधन बनानी / / 14 / / कितने ही सुखद कार्य उन्होंने इस जग में किये थे / जग में अपनी करणी-कृतियों से नाम अमर किये थे / / ऐसे वे युग पुरुष, धर्म प्रति पालक, समाज सेवक हुए थे / देश में अनेकों पाठशालायें खलवाकर अनेक विद्वान बनानी // 15 / / अंतिम समय में उन्हें कर्मों के वश, कम्प रोग हआ था / हाथों पैरों में था कम्पन बोलने में भी कष्ट हो रहा था / पत्रों में दिन-प्रति समाचार निकलते वायु कंप रोग था / एक माह पूर्व से ही अजिताश्रम में उनका निवास था / / पैर की हड्डी टूटने से हुये अशक्त जब, तव पलस्तर है चढ़ानी // 16 // कुछ पुण्य उदय से मैं लखनऊ सेवाहित पहँचा भाई / तारण-तरण समाज का सेवक बना उनको सुखदाई // दो-चार दिन में मूत्र से पलस्तर भीगा जब भाई / काटने हेतु उसे तब अस्पताल में सबने भरती कराई // काटा गया पलस्तर तब घाव दिखा उसमें दुखदानी / // 17 // छह इंच चौड़ा, छह इंच लंबा, छह इंच गहरा बना घाब था / दिन प्रति कटता, पीव भरता देखकर सबका बेहाल था / पर धन्य है उन साधु को जिन्हें केवल कर्मों का जाल था / आह भी नहीं करते थे परिषह सहन करते मस्तक विशाल था // डाक्टरों ने दर्द की दवा लेने हेतु कहा पर उनने बात नहीं मानी // 18 // संतरा, मसम्मी का रस अरु दूध मात्र ही उनका आहार था / धर्मों के पाठ सुनाता रहे कोई उनका यह विचार था / इक्कीस दिन बीते स्वास्थ्य में नहिं किंचित सुधार था / बाईसवें दिन आहियागज धर्मशाला में जन जन बेशुमार था /