Book Title: Samajonnayak Krantikari Yugpurush Bramhachari Shitalprasad
Author(s): Jyotiprasad Jain
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Digambar Jain Parishad

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Page 90
________________ कवितांजलि पहरेदार ब्रह्मचारी जी को शत्-शत् प्रणाम पतनोन्मख समाज का था, किन्चित न किसी को ध्यान, नुक्ता "मरण-भोज" द्वारा, विधवायें थीं हैरान, जागति के अभाव में, बढ़ता जाता था अज्ञान, जीवनदाता वने, सुधारक, अमृत-मय व्याख्यान, जीते जी समाज सेवा से लिया नहीं विश्राम / __ ऐसे विज्ञ ब्रह्मचारी जी को बारम्बार प्रणाम // रहा आत्म चिन्तन तक सीमित, साधु संत समुदाय, सामाजिक विकास में, रहता था समाज निरूपाय, नग्न नृत्य करता था, सरपंचों का मान कषाय, गणना घटती जाती थी, था अस्त व्यस्त समुदाय, ___ कुप्रथा मुक्त समाज आज उनके श्रम का परिणाम / ऐसे पूज्य ब्रह मचारी जी को बारम्बार प्रणाम / / छाया था सारे समाज में, ॲधकार पतझार, अबलाओं, निराश्रितों में व्यापक था हाहाकार, प्रकट नहीं कर सकता था, कोई स्वतंत्र उद्गार पोंगापंथी पंथ को दी, उस समय स्वयं ललकार, डरे नहीं किंचित विरोध से, किया सत्य-संग्राम / ऐसे विज्ञ ब्रहमचारी जी को बारम्बार प्रणाम // रचा रहे थे पगड़ी धारी, मुखियागण पाखण्ड, नष्ट कर रही थी समाज को गृह सत्ता उद्दण्ड, कोई मुख खोले तो मिलता, वहिष्कार का दंड, इतने घोर तिमिर में चमका, यह "शीतल" मार्तण्ड, किया समाजोत्थान हेतु, अपने सुख को नीलाम / ऐसे विज्ञ ब्रहमचारी जी को शतशत बार प्रणाम / / -कल्याणकुमार जैन 'शशि'

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