Book Title: Samajonnayak Krantikari Yugpurush Bramhachari Shitalprasad
Author(s): Jyotiprasad Jain
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Digambar Jain Parishad

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Page 69
________________ श्री रमाकान्त जैन "तीर्थंकर" पत्र के जैन पत्र पत्रिकाएं विशेषांक के लिए लेख लिखने के सिलसिले में जब एक भले-बिसरे पत्र "सनातन जैन" की पुरानी फाइल पलट रहा था तो ज्ञात हुआ कि पतितोद्धारक ब्रह्मचारी शीतलप्रसाद जी ने सन् 1928 के लगभग तीर्थंकर प्रणीत सनातन जैनधर्म का सर्वत्र प्रचार तथा समयानुकूल समाजोन्नति का प्रयत्न करने, अर्थात (1) अजैनों को जैनधर्म में दीक्षित करने और जातिच्युत जैनों की शास्त्रोक्त शुद्धि करने, (2) बाल, वृद्ध और अनमेल विवाहों तथा प्रचलित सामाजिक कुरीतियों का निषेध करने, (3) पारस्परिक प्रेमभाव की वृद्धि तथा अन्तर्जातीय विवाह आदि संबंध का प्रचार करने, (4) प्रत्येक स्त्री-पुरुष को ब्रह्मचर्य व्रत पालने की प्रेरणा करने किन्तु यथोचित शील व्रत पालने में असमर्थ विधवाओं के लिए पुनर्लग्न की प्रथा का प्रचार करने तथा (5) पनविवाह करने वाले स्त्री-पुरुषों के धार्मिक और सामाजिक स्वत्वों की रक्षा करने के उद्देश्य से सनातन जैन समाज की स्थापना की थी और अपने इन उद्देश्यों की पूर्ति और प्रचार हेतु वर्धा से हिन्दी में 'सनातन जैन" नाम से मासिक पत्र निकाला था, जो बाद में बुलन्दशहर में बा• मंगतराय जैन (साधु) द्वारा 1950 ई. तक प्रकाशित किया जाता रहा / ब्रह्मचारी जी की प्रेरणा से अकोला आदि में विधवाश्रमों की स्थापना भी हुई। बा० मंगतराय जैन "साधु" यह सत्य है कि समाज सुधारकों की कद्र उनके जीवनकाल में न होकर उनके पश्चात होती है, किन्तु जैन समाज ने ऐसा नहीं किया / अब हम कृतघ्न न होकर कृतज्ञ बनें और ब्रह्मचारी जी के स्मारक सनातन जैन समाज को चिरस्थायी रखें / डा० नेमीचन्द्र जैन सं० तीर्थकर वे जैन समाज के राजा राममोहन राय ही थे। उनकी सुधारवादी चेतना अत्यन्त प्रखर थी / "जैनमित्र' के संपादन में उनकी इस राजनीति का प्रतिबिम्ब मिलता है /

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