Book Title: Samajonnayak Krantikari Yugpurush Bramhachari Shitalprasad
Author(s): Jyotiprasad Jain
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Digambar Jain Parishad

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Page 61
________________ डॉ. सैय्यद हफीज ब्रह्मचारी जी के व्याख्यानों ने मेरे हृदय पर गहरा प्रभाव डाला। जैन सिद्धांत का प्रशंसनीय ज्ञान, प्रतिपादन की स्पष्टता, उनका संयमी जीवन भुलाया नहीं जा सकता। वे ऐसे विरले विद्वान् थे जिन्होंने जैन शासन की आत्मा में प्रवेश करके उसे अपने दैनिक जीवन में उतारा। यह निश्चय होने पर कि श्रोता वास्तव में आध्यात्मिक सत्य का प्रेमी है, वह उसके हृदय से संदेह निवारण करने और सिद्धांत को यथार्थता और युक्ति समझाने के लिए घंटों लगा देते थे। भरन्त प्रानंद कौसल्यायन धर्म प्रचार की धुन तो ऐसी हो / उनकी दृष्टि वड़ी विशाल थी अपनी चर्या में गजब के नियम पालक थे। उनके वियोग से एक सच्चा साधु न रहा, जो अपने जैन समाज से भी लड़ सकता था और पराये समाज से भी, सत्य की खातिर और केवल सत्य की खातिर / डॉ० ए० एन० उपाध्ये . पूज्य ब्रह्मचारी जी का यह श्लाघनीय गुण था कि वे उन पुरुषों का भी ध्यान रखते थे जिनसे की उनका मतभेद था। डॉ० हीरालाल जैन जैन त्यागी वर्ग में ब्रह्मचारी जी सदश विद्वान, उद्योगी, धर्म तथा समाज सेवा में निःस्वार्थ रूप से तन्मय दूसरा व्यक्ति अभी तक दिखाई नहीं दिया। बा. कामता प्रसाद जैन वह ओतप्रोत धर्ममय थे। उनमें राष्ट्र-धर्म भी था, समाज धर्म भी था और आत्मधर्म भी था। जैनधर्म के प्रचार की भावना उनके रोमरोम में समाई थी। पं० माणिक्यचन्द्र कौम्य न्यायाचार्य बीसवीं शती के महान नर-रत्नों में ब्रह्मचारी शीतलप्रसाद जी भी गणनीय नरपुंगव हो गये हैं। जैनधर्म और जैन जाति का उत्थान करने में वह जीवन पर्यन्त सन्नियोग से संलग्न रहें - ज्ञान और चरित्र को बढ़ाना उनका नैसर्गिक काम था / कुरीति-निवारणार्थ व्याख्यान करते 54

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