Book Title: Samajonnayak Krantikari Yugpurush Bramhachari Shitalprasad
Author(s): Jyotiprasad Jain
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Digambar Jain Parishad

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Page 66
________________ सुनते थे। उन्होंने इस मात्मदर्शन को सदा ही ज्ञान द्वारा पुष्ट और शरोर द्वारा सफल किया / उपाध्याय भुनि श्री विद्यामंद जी मैंने ब्र० जी की प्रत्यक्ष देखा नहीं, पर मैंने उनके 35 ग्रंथों को देखा जिमका उन्होंने संपादन किया। वह बहुत अद्भुत है / उनके संपादन में मुझे अत्यन्त प्रमाणिक अर्थ देखने को मिला। उन्होंने स्वेच्छा से कुछ परिवर्तन नहीं किया / वास्तव में ब्र. जी सिद्धहस्त लेखक थे। वे कलम के धनी थे / रेल में सफर करते हए भी वे लिखा करते थे। शीतल प्रसाद जी एक क्रान्तिकारी थे / उनका समाज पर वहत उपकार है। भारत में के अनेक स्थानों पर गए और प्राचीन शिलालेखों की खोज करते रहे / उनको पुस्तकों को पढ़कर मैं भी वहां जाता रहा / जब 30 जी बीमार हो गए तो रूढ़िवादी पंडित जी ने उन्हें धर्म सुनाने से इन्कार कर दिया / धर्म सुनाने के लिए उन्होंने यह शर्त रखी कि ब्रहमचारी जी को अपनी कोई मान्यता को छोड़ना होगा। क्या जीवधर ने कुत को मरते समय णमोकार मंत्र सूनाने से पहले कोई शर्त रखी थी ? यह सब रूढ़िवादिता है। हम तो आत्मवादी हैं, अनात्मवादी नहीं / हमने समयसार ग्रंथ पर पिछले दिनों सभी उपलब्ध टीकाएँ देखीं, परन्तु सबसे अधिक प्रमाणिक टीका ब्र० शीतलप्रसाद जी की मिली। श्री अगरचन्द्र नाहटा . ब्र० जी का अध्ययन और लेखन बहत विशाल था / धन के धनी ब्र. शीतल प्रसाद जी जैन धर्म के महान सेवक, प्रचारक एवं लेखक थे / उनके उल्लेखनीय कार्यों और ग्रंथों में एक है-प्राचीन जैन स्मारक, 5 भाग / अपने ढंग का यह पहला और एक ही कार्य था। बं• जी ने इन पांच भागों को तैयार करने में कितना समय लगा या और कितना अधिक श्रम किया है, इसे कोई भक्तभोगी लेखक ही जान संकता है। ऐसे महत्वपूर्ण ग्रंथ तैयार करना उन जैसे महान् परिश्रमी और धुन के धनी व्यक्ति के लिए ही संभव हैं। जैन समाज के सैकड़ों लेखकों में से किसी ने भी ऐसा और इतना बड़ा काम नहीं किया। इस ग्रंथ 54

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