Book Title: Samajonnayak Krantikari Yugpurush Bramhachari Shitalprasad
Author(s): Jyotiprasad Jain
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Digambar Jain Parishad
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________________ प्रकार का इलाज. तन-मन-धन से भक्तिपूर्वक किया / दिल्ली में बिजली के सेंक का इलाज कराया गया। फिर बम्बई चले गये। वहां भी विभिन्न प्रकार का चिकित्सा और सेवा की गई। जुलाई 1940 मे रूग्णावस्था में लखनऊ आये / टाटपट्टी याहियागंज की धर्मशाला में रहकर एक हकीम का इलाज बहुत दिन तक होता रहा / रोहतक से एक ब्राह्मण परिचर्या के लिए उनके साथ आया था / ला. मन्नालाल कागजी व उनका परिवार, ब्र० जी के भानजे ला० वराती लाल जी, ब्र० जी के भाई सन्तूमल जी व भतीजे धर्मचन्द्र एवं सुमेरचन्द्र तथा अन्य सब जैन स्त्री पुरुष भक्तिभाव से सेवा में लगे रहे परन्तु कुछ लाभ न हुआ। बल्कि बीमारी एवं निर्बलता बढ़ती गई / 6 दिसम्बर, 1940 को ब्रह्मचारी जी अजिताश्रम पधारे, वहां एक डाक्टर द्वारा बिजली का इलाज शुरु किया गया / उससे इतना लाभ हुआ कि शरीर का वजन 8. से बढ़कर 100 पौंड हो गया, नाखूनों की सफेदी जाती रही, बदन की झुर्रियां मिट गई, मलावरोध की बाधा दूर हो गई और भूख भी काफी खुल गई / कंपन का वेग भी कम हो गया, मुंह से लार टपकना भी वन्द हो गया, और सड़क पर बिना किसी के सहारे आधा मौल तक घूम भी आते थे। दो वैतनिक कर्मचारी, एक वैतनिक वैद्य और अजिताश्रमवासी स्त्री-पुरुष सेवा में लगे रहते थे। बीच बीच में कानपुर से वैद्यरत्न हकीम कन्हैयालाल जो भी देखने के लिये आते रहते थे और बहपल्य औषधियां बिना मूल्य भेजते रहते थे। दो तीन बार दि. जैन परिषद के प्रधान मन्त्री रतनलाल जी (बिजनौर) की मित्रता के नाते ख्यातिप्राप्त वैद्य शिवरामजी भी पधारे। झवाई टोले के खानदानी हकीम अब्दुल हलीम को भी दिखाया गया / भाप का इलाज हुआ, तेल की मालिश कराई गई / सूरत से सेठ मलचंद किसनदास कापड़िया भी जी से मिलने आये / पर्युषण पर्व में ब्र० जी नगर के विभिन्न जिनालयों में भी दर्शनार्थ गये / 7 अक्टूबर 1940 की रात्रि में 11-12 बजे ब्रह्मचारी जी की जुबान जो मुद्दत से बन्द थी एकाएक खुल गई। समयसार गाथा और समयसार कलशा स्पष्ट स्वर से लेटे लेटे देर तक पढ़ते रहे और व्याख्यान रूप बोलते रहे / बा० अजित प्रसाद जी को बुलाया और कहने लगे कि बाराबंकी, अयोध्या, बनारस, आरा, पावापुरी, राजगृही