Book Title: Samajonnayak Krantikari Yugpurush Bramhachari Shitalprasad
Author(s): Jyotiprasad Jain
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Digambar Jain Parishad
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________________ कराई भी, किन्तु प्रतिष्ठाचार्यों को वह अनुकूल नहीं पड़ा / प्राचीन जैन स्मारिकों से संबंधित पुस्तकें उस काल में पाएनियर कार्य था, उपयोगी भी रहा, किन्तु अब उनके नए संस्करण हों तो उनमें पर्याप्त संशोधन एव संबद्धन की आवश्यकता होगी। जिन ग्रंथों की ब्र. जी ने टीकायें लिखीं उनमें से तारणतरण साहित्य को छोड़कर कई टीकाएं कालान्तर में पुनः प्रकाशित हो चुकी हैं। अतएव उनमें से शायद एक दो ही ऐसी निकलें जिनका पुनः प्रकाशन उपयोगी होगा / जैनमित्र, वीर, आदि की फाइलों से ब्रह्मचारी जी के लेखों का संग्रह करके उनमें से अनेक लेख ऐसे चुने जा सकते हैं जिनका संकलन प्रकाशनीय होगा। इस बात की आवश्यकता अधिक है कि ब्रह्मचारी जी के प्रगति शील एवं सुधारवादी विचारों में से जो भी समयोपयोगी हैं, उनका अच्छा प्रचार किया जावे और उनके मिशन को आगे बढ़ाया जाय /