Book Title: Samajonnayak Krantikari Yugpurush Bramhachari Shitalprasad
Author(s): Jyotiprasad Jain
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Digambar Jain Parishad

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Page 25
________________ सीतल प्रसाद जी परे जैन समाज पर छाए रहे। किसी ने उनकी स्वामी समंत भद्र से तुलना की, किसी ने उन्हें अपने युग का सर्वोपरि जैन मिशनरी कहा। समाज उनके ऋण ने कभी उऋण नहीं हो सकता। जीवन के अतिम से वर्षो में काप-रोग से पीड़ित होकर वह लखनऊ में ही रहे / रोगजन्य असह्य पीड़ा वेदना व परिषहों को समभाव से सहते रहे और अंत में 10 फरवरी, 1942 को प्रात: 4 बजे उनका शरीर पूरा हो गया। क्षणभंगुर देह नहीं रही, किन्तु उनका कृतित्व, उनका यश : शरीर अमर है। बकौल अकबर इलाहाबादी : हंस के दुनिया में मस कोई, कोई रोके मरा। जिन्दगी पाई मगर उसने, जो कुछ हो के मरा।। जी उठा मरने से वह, जिसकी खुदा पर थी नजर / जिसने दुनिया ही को पाया था, वह सब खो के मरा // था लगा रूह पे गफलत से दुई का धब्बा / था वही सूफियेसाफी जो उसे धो के मरा।।

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