Book Title: Samajonnayak Krantikari Yugpurush Bramhachari Shitalprasad
Author(s): Jyotiprasad Jain
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Digambar Jain Parishad

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Page 39
________________ संत थे / जिसका प्रधान कारण समयसार का अध्ययन-मनन था। वह तत्वज्ञानी भी थे और आध्यात्मिक साहित्य के रचयिता रहे। महात्मागांधी उन्हें अपना गुरू एवं मार्ग दर्शक मानते थे। रायचन्द्र जी / अनुयायियों एवं प्रशंसकों का एक अच्छा दल बन गया, जिसने आगाई में उनके नाम से एक संस्था एवं शास्त्रमाला की स्थापना की, जे अभी भी चल रही है / सोनगढ़ के आध्यात्मिक संत श्री कान में स्वामी भी श्री रामचन्द्र भाई की भांति गुजराती एवं मलतः श्वेताम्बर सम्प्रदाय के अनुयायी थे, किन्तु समयसार के अध्ययन मनन ने उनकी दृष्टि एवं जीवनधारा ही बदल दी / वस्तुतः इस युग में समयसांग का जितना प्रचार-प्रसार एवं प्रभावना कानजी स्वामी और उनवे संस्थान द्वारा हुआ है, वह अद्वितीय है। स्वयं दिगम्बर परम्परा में मैं जयपुर के प० जयचन्द्र छाबड़ा, दीपचन्द्र शाह आदि तथा "छहढाल की प्रसिद्धि के पं० दौलतराम जैसे अध्यात्म मर्मज्ञों के अतिरिक्त कारंजा के सेनसंवी भटटारक लक्ष्मीसेन (184265) समयसार के अध्येत एवं अच्छे प्रभावक बिद्वान थे / उनके शिष्य एवं पट्टधर धीरसेन स्वाम ( 1876-1918 ) तो समयसार के श्रेष्ठ मर्मज्ञ थे। ब्रह्मचारी शीतलप्रसाद जी इन वीरसेन स्वामी जी को अपना अध्यात्म-विद्यागुर मानते थे / वह कहा करते थे कि स्वामी जी घन्टों पर्यन्त समयसा का धाराप्रवाह व्याख्यान करते थे / और श्रोता मंत्रमुग्ध होकर सुन रहते थे / सन् 1916 में ब्रह्मचारी जी ने कारजा में चातुर्मास किया जिसमें मुख्य हेतु वीरसेन स्वामी के सानिध्य में अध्यात्मज्ञान ला करना था / हमने स्वयं ब्रह्मचारी जी को कई सार्वजनिक सभा में अध्यात्म विषय पर डेढ़-दो घन्टे तक धारा प्रवाह में बोलते और उनके श्रीताओं को मंत्रमुग्ध होते देखा सुना है / गों में ब्रह्मचारी र्ज का रूझान अध्यात्म की ओर प्रारम्भ से ही कुछ विशेष था, 1916 के पूर्व ही उनकी तत्वमाला, अनुभवानंद, स्वसमरानंद, नियमसार टीक समयसार की तात्पर्यबृत्ति टीका की वनिका आदि रचनाएं प्रकाशित हो चुकी थी / समयसार कलश की उनकी टीका 1628 में प्रकाशित हुई / ब्रह्मचारी जी की छोटी बड़ी लगभंग 80 कृतियों का पता चलत है, जिनमें से 25 अध्यात्म विषयक हैं / इस प्रकार ब्रह्मचारी ज अपने समय के जैन समाज में समयसार एवं अध्यात्म के प्रायः सबै परि व्याख्याता थे / तथापि उनकी यह एक बड़ी विशेषता रही कि ( 32 )

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