Book Title: Samajonnayak Krantikari Yugpurush Bramhachari Shitalprasad
Author(s): Jyotiprasad Jain
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Digambar Jain Parishad
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________________ शीतल प्रसाद जी ने जब पूज्य तारण स्वामी के साहित्य को देखा था और उनकी टीकाएं लिखने एवं उन्हें प्रकाशित करने का कार्य उठाया था तथा सामान्यतः तारण-तरण समाज में नवजागति एवं प्राण संचार किया था, तब डाल चन्द जी की शैशवावस्था ही थी / किन्तु उनका पूरा परिवार तभी से ब्रह्मचारी जी का भक्त हो गया। होश सम्हालने पर डालचन्द जी में भी वे संस्कार आये और वह ब्रह्मचारी जी के प्रति बड़ी श्रद्धा एवं आदर का भाव रखते आये हैं। अतएव प्रस्तुत पुस्तिका के प्रकाशन में उन्होंने जो अभतपूर्व रुचि ली और तत्परता के साथ इसका उत्तम प्रकाशन कराया वह उनके उपयुक्त ही था - उसके लिए उन्हें कौन और क्या धन्यवाद दें ? इस पुस्तिका में ब्रह्मचारी जी के संबंध में जो ज्ञातव्य हमें अपने स्वयं के संपर्कों द्वारा, उनकी उपलब्ध रचनाओं के अवलोकन के द्वारा वा० अजित प्रसाद जी की पुस्तक "ब्रह्म. शीतल" ला. राजेन्द्रकुमार जी द्वारा सुसंपादित "वीर" के "शीतल अंक" श्री अयोध्या प्रसाद गोयलीय की पुस्तक 'जैन जागरण के अग्रदूत" (1952) श्री सुरेशचन्द्र जी की पुस्तिका "ब्रह्मचारी शीतल प्रसाद जी" लखनऊ जैन मिलन की "मिलन शीतल स्मारिका" पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित ब्रह्मचारी जी विषयक लेखों आदि से प्राप्त हुए, उन सबका यथायोग्य उपयोग किया गया है / हम उन सबके, लेखकों आदि के आभारी हैं / पुस्तक में अनेक त्रुटियां भी हो सकती हैं, उनका उत्तरदायित्व हमारा है / पुस्तक के लेखन व प्रेस कापी आदि तैयार करने में अनुज अजित प्रसाद जैन (महामंत्री-तीर्थकर महावीर स्मृति केन्द्र समिति, उ० प्र०) पुत्र रमाकांत जैन, पौत्र नलिनकान्त जैन तथा अनिल कुमार अग्रवाल का भी यथावश्यक सहायता सहयोग मिला है। ___ क्योंकि ब्रह्मचारी जी विषयक पूर्वोक्त पुस्तकें, विशेषांक आदि अब प्राय: सब अप्राप्य हैं, इस पुस्तिका को उपयोगिता एवं आवश्यकता स्वयं सिद्ध है / आशा है कि पूज्य व्रहमचारी जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की स्मृतियों को सुरक्षित रखने में, उनके तथा उनके साहित्य पर आगे कार्य करने के लिये और उनके आदर्शों से प्रेरणा लेने में पह तुच्छ प्रयास किसी सीमा तक सफल होगा इसी से इस पुस्तक की सार्थकता है। ज्योति प्रसाद जैन 'ज्योति निकुन्ज' चार बाग लखनऊ-१६ दि. 10 फरवरी 1683 ई० (8)