Book Title: Samajonnayak Krantikari Yugpurush Bramhachari Shitalprasad
Author(s): Jyotiprasad Jain
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Digambar Jain Parishad

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Page 20
________________ जैनों में, अजैनों में, स्वदेश में, विदेश में जैनत्व की झलक भरने का प्रयत्न करना उस समाजोद्धारक एवं धर्म प्रचारक संत की स्वासों का मधुर . सगीत बन गया था। - वे पंडितों में पंडित थे और बालकों में विद्यार्थी। उदारता और कट्टरता का उनमें विलक्षण समन्वय था। आटा हाथ का पिसा हो, मर्यादा के अन्दर हो ,जल छना हुआ तथा शुद्ध हो, दाता गृहस्थ की जैन धर्म में निशंकित श्रद्धा हो , वहीं उनका आहार होता था। उनका आहार विहार शास्त्रोक्त था। साथ ही उनका दृष्टि कोण उदार था / सुधारकों में अग्रतम सुधारक थे। कुरीतियों और लोकमढ़ताओं के लिए तो वे प्रलयंकारी ज्वाला थे / जन जाति की उन्नति के लिए उनका हृदय तड़पता था। वह असाधारण जैन मिशनरी थे, अजैन विद्वानों के सामने एक सच्चे जैन मिशनरी की स्प्रिट से जा पहुँचते थे / आज पंजाब विश्वविद्यालय के वॉइस चांसलर प्रोफेसर वुलर को प्रभावित कर विश्वविद्यालय में जैन दर्शन प्रचार की जड़ जमाई जा रही है तो कल राधास्वामियों के " साहब जी" को जैन दर्शन की खूबियां समझाने दयाल बाग पहुंच रहे हैं / अनेक शिक्षितअजैनों को प्रभावित करके जैन धर्म का श्रद्धालु बनाया यथा पंडित मूल चन्द्र तिवारी, ठाकुर प्यारेलाल आदि / तत्वार्थ सूत्र और द्रव्य संग्रह को जैनोंकी वाइविल कहते थे और उनके पठन-पाठन का छात्रों में अधिकाधिक प्रचार करते थे। राष्ट्रीय भावना और देश भक्ति से इतने ओतप्रोत थे कि जैन समाज को उद्बोधन दिया "अपने को भारतीय समझो। कांग्रेस का साथ दो। भारत की दशा दयाजनक है। देश सेवा धर्म है, कठिन व्रत है / यह एक ऐसा यज्ञ है जिसमें अपने को होम देना होता है। "( जैनमित्र 5-12-40 ) / वह जैन पोलिटिकल कान्फ्रेंस के जन्मदाताओं में से थे,जिसके द्वारा वह जैनों व राष्ट्रीय नेताओं में सम्पर्क स्थापित करना चाहते थे। प्रचंड स्वतन्त्र संग्राम सेनानी पं० अर्जुन लाल जी सेठी की नजरबन्दी के विरोध में चलाये गये आन्दोलन का उन्होंने जोरदार नेतृत्व किया। भीषण विरोधों के बावजूद, वह अपनी ही राह पर चले / देह ममत्व के त्यागी, अध्यात्म पथ के पथिक एवं मन्दकषायी होते हुए भीउन्हें सदैव समाज हित की चिन्ता और धर्म प्रचार की बेचेनी रहती थी। ( 13)

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