Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 5
Author(s): Kasturchand Kasliwal, Anupchand
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur
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६५ भट्टारक संकलकीसिनुरास (६३१०)
भट्टारक सकलकीर्ति १५ वीं शताब्दी के जबरदस्स विद्वान संत थे। जैन वाङ् मय के निष्णात ज्ञाता थे । उनकी वाणी में सरस्वती का बास था एवं ये तेजोमय व्यक्तित्व के धनी थे। उन्होंने बांगड देश में भट्टारक संस्था की इतनी गहरी नींव लगायी कि वह श्रागामी ३०० वर्षों तक उसने समस्त समाज पर एक छत्र राज्य किया । भट्टारक सकलकोति स्वयं ऊंचे विद्वान एवं प्रक शास्त्रों के रचयिता थे। इसके प्रशिष्य भी बड़े भारी साहित्य सेवी होते रहे । प्रस्तुत रास में भट्टारक सकलकीर्ति एवं उनके शिष्य भ० भुवनकीर्ति का संक्षिप्त परिचय दिया गया है। रास ऐतिहासिक है और यह उनके जीवन की कितनी घटनाओं का उद्घाटित करता है । रास के प्रारम्भ में प्राचार्यो की परम्परा दी है। और फिर म० सकलकोति के जन्म, माता, पिता, श्रध्ययन, विवाह, संयम ग्रहण, भट्टारक पद ग्रहण ग्रंथ रचना यदि के बारे में संक्षिप्त परिचय दिया गया है । इसके पश्चात् २४ पद्यों में भ० भुवनकीति के गुणों का वर्णन किया गया है । भ० भुवनकीति की सर्व प्रथम संवत् १४८२ में हंगरपुर में दीक्षा हुई थी। रास पूर्णतः ऐतिहासिक हैं ।
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(. पैंतीस )
ब्र० सामल की यह रचना अत्यधिक महत्वपूर्ण है जिसको एक पाण्डुलिपि उदयपुर के संभवनाथ मन्दिर में संग्रहीत है ।
विलास एवं संग्रह कृतियां
६६ बाहुबलि छन्द (६४७९)
यह लघु रचना भ० प्रभाचन्द्र के शिष्य वादिषन्द्र की कृति है । इसमें केवल ६० पय है जिसमें भरत सम्राट के छोटे भाई बाहुबलि की प्रमुख जीवन घटनाओं का वर्णन है । रणना अच्छी है तथा एक संग्रह ग्रंथ में संग्रहीत है।
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६७ चतुर्गति नाटक (६५०४)
डालूराम हिन्दी के प्रसिद्ध कवि थे । ग्रंथ सूची के उसी भाग में उनकी है और रचनाओं का विवरण तिर्यञ्च श्रौर नरकगति में सट्टे जाने वाले 'दुःखों का नायक है जो विभिन्न योनियों को बारण करता हुआ
दिया गया है । चतु गति नाटक में चार गति देव, मनुष्य, वर्णन किया गया है । यह जीव स्वयं जगत् रूपी नाटक का संसार परिभ्रमण करता रहता है। रचना अच्छी है तथा पठनीय है ।
६८ संबोध संत्तारयतु दूहा (६७७६)
यह वीरचन्द की रचना है जो संयोधनात्मक है । वीरबन्द का परिचय पहिले दिया जा चुंका है। भाषा एवं शैली की दृष्टि में रचना सामान्य है ।
स्तोत्र
६६ अकलंकदेव स्तोत्र भाषा (६७६४)
Prat
कलंक स्तोत्र संस्कृत का प्रसिद्ध स्तोत्र है और यह उसी स्तोत्र की परमतखंडिनी नास की भाषा टीका
। इस टीका के टीकाकार चंपालाल बागडिया है जो झालरापाटण (राजस्थान) के निवासी थे। टीका विस्तृत