Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 5
Author(s): Kasturchand Kasliwal, Anupchand
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur
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( सेलीस
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५६ चतुगंति रास (६१४६)
परिचन्द हिन्दी के अच्छे कवि थे। इनकी अब तक कितनी ही रचनानों का परिचय मिल चुका है। इन रखनामों में चतुर्गति रास इनकी एक लघु रचना है। जिसकी एक पाण्डुलिपि कोटा के बोरसली के मन्दिर के शास्त्र भण्डार में संग्रहीत है । रचना प्रकाशन योग्य है।
५७ वर्धमान रास (६२०७)
भगवान महवीर पर यह प्राचीनतम रास संज्ञक काव्य है जिसका रचना काल संवत १६६५ है तथा जिसके निर्माता हैं पद्धमान कवि । रास यद्यपि अधिक बड़ा नहीं है फिर भी महावीर पर लिखी जाने वाली यह उल्लेखनीय रचना है । काश्य की दृष्टी से भी यह अच्छी रचना है । बर्धमान कवि ब्रह्मचारी थे और भट्टारका पादिभुषण के शिष्य थे।
संवत सोल पासहि मार्गसिर सुदि पंचमी सार । ब्रह्म वर्धमानि रास रच्यो तो साभलो तम्हे नरनारि ।।
५८ सीताशील पताका गुरगवेलि (६२३२)
वेलि संज्ञक रचनाओं में प्राचार्य जयकीति की इस रचना का उल्लेखनीय स्थान है। इसमें महासती सोता के उत्कृष्ट चरित्र का यशोगान गाया गया है। प्राचार्य जयोति हिन्दी के अच्छे कवि थे। प्रस्तुत ग्रन्थ सूची में ही उनकी ६ रचनाओं का परिचय दिया गया है। इनमें अकलंकयतिरास, अमरदत्त मित्रानन्द रासो, रश्वित कथा, वसुदेव प्रथम्प, शोलसून्दरी प्रबन्ध उक्त वेलि के अतिरिक्त हैं। कवि ने काव्य के विवध रूपों में रचनायें लिखी श्री तथा अपनी कृतियों को विविध रूपों में लिख कर पाठकों की इस ओर रुचि जाग्रत किया करते थे।
मा. जयकीति ने मट्टारकीय युग में भट्टारक सकलकीति की परम्परा में होने वाले म० रामकोति के शिष्य ब्रह्म हरखा के प्राग्रह से यह वेलि लिखी थी। इस का रचना काल तंवत १६७४ ज्येष्ठ सुदी १३ बुधवार है। यह गुजरात प्रदेश के कोटनगर के प्रादिनाथ चैत्यामप में लिखी गयी थी । प्रस्तुत प्रति को एक और विशेषता है कि वह स्वयं ग्रन्थकार के हाथ से लिखी हई है जैसा कि निम्न प्रशस्ति में स्पष्ट है
संवत १६७४ आषाढ सुदी ७ गुरो श्री कोटनगरे स्वज्ञानावरणी कर्मक्षयार्थ प्रा० श्री जयकीसिना स्वहस्ताम्यां लिखितेयं ।
५८ जम्बूस्वामीरास (५१५४)
प्रस्तुत रास नयविमल की रचना है। इसमें अन्तिम केवली जम्बूस्वामी के जीवन पर विस्तृत प्रकाश डाला गया है। यह रास माषा एवं खली की दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण है । रास में रचनाकाल नहीं दिया है लेकिन यह १८ वी प्रसादी का मासूम देता है । इसको एक प्रति शास्त्र मण्डार दि. जैन मन्दिर बोरसली कोटा में संग्रहीत है।