Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 5
Author(s): Kasturchand Kasliwal, Anupchand
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur
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रचनायें लिख कर १५ वीं शताब्दी में हिन्दी के पठन पाठन में घपना अपूर्व योग दिया। प्रस्तुत ग्रन्थ सूची में हो इनकी ६१ रचनाओं का परिचय दिया गया है। इनमें संस्कृत की प्राकृत की एक तथा शेष ५२ रचनायें हिन्दी भाषा की है। प्रस्तुत ग्रन्थ सूची में सबसे अधिक कृतियां इन्हीं को है इसलिये ब्रह्म निवास साहित्यिक सेवा की दृष्टि से सर्वोपरि है। कवि की विरासतक रचनाओं की उपलब्धि हुई है इनके नाम निम्न प्रकार है
१. अजितनाथ रास
३. कर्मविपाकरास
५. जीवंधर रास
७. नवकार रास
६. नागकुमार रा
११. परमहंस
१३. यशोधर रास
१५. राम रास
१७. श्रावकाचार रास
१६. श्रतकेवलि रास
२१. सहकार रा
२३.
रास
२५. करकंडुन राम
२७. धन्यकुमार राम २६. पानीपाल रास
३१. मविष्यदत्त राख
३३. सुदर्शन रास
(९१२३)
(६१४६)
(६१५७)
(६१७१)
(६१७२)
(१९६०)
(६११७)
(६२०३)
(६२१४)
(६२२३)
(६२३९)
(१०२३९)
(६१४७)
(६२६३)
(१०१२० )
(६१८०)
(१०२३१)
२. प्रादिपुराण रास
स्वामी प
६. दानफल रास
धर्मपरीक्षा राम
१०. नेमीश्वर राम
१२. भद्रबास
१४. रामचन्द्र रास
१६. रोहिणी राम
१५. श्रीपाल रास
२०.
किस
२२. हनुमंत रास
२४. पठान
राम
२६. चारुदत प्रबंध रास
२०. नागधीरास
३०. बंकर सि
३२. सम्यक्त्व रास
१४. होली रास
(६१३५)
१६१५२)
ब्रह्मजिनदास की रचनाओं का भी मूल्यांकन विश्वविद्यालय में शोध कार्य चल रहा है लेकिन अभी तक घने का मूल्यांकन किया जा सकता है। एक ही नहीं बीसों शोध निबन्ध लिखे जा सकते हैं।
(६१६१)
(६१६५)
(६१७३)
(६१९१)
(६२०२)
(६२०६)
(६२१५)
(६२२५)
(६२४३)
(१०१२० )
(१०२१८०
(१०२३१)
(६१६०)
(१०२३६)
१५ वीं शताब्दी में होने वाले एक ही कवि के इतनी अधिक रास संकृतियों का उपलब्धि हिन्दी साहित्य के इतिहास में सचमुच एक महत्वपूर्ण कहानी है। कवि का रामसीताराम ही महाकवि तुलसीदास की रामायण से बढी रामायण है से कवि की कुछ कृतियों को छोड़ कर सभी रचनायें महत्वपूर्ण तथा भाषा एवं शैली की दृष्टि से उल्लेखनीय है। कवि का राजस्थान का बाग प्रदेश एवं गुजरात मुख्य कार्य स्थान रहा था। इसलिये इनकी रचनाओं पर गुजराती भाषा एवं शैली का भी अधिक प्रभाव है।
नहीं हो पाया है। यद्यपि कवि पर राजस्थान साहित्यिक दृष्टियां है जिनके आधार पर कवि
मिट्टारक सकलकीर्ति के भाई ही नहीं किन्तु उनके प्रमुख शिष्य भी थे। इन्होंने अपनी कृतियों में
पहिले सकलकीति की और उनकी मृत्यु के पश्चात भ० भुवनकीति का स्मरण किया है को उनके पश्चात मट्टारक गादी पर बैठे थे जिनदास राय संज्ञक रचनाओं के अतिरिक्त दौर भी रचनायें लिखी है। जिनके चाचार पर यह कहा जा सकता है कि कवि सर्वतोमुखी प्रतिमा वाले विद्वान थे।