Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 5
Author(s): Kasturchand Kasliwal, Anupchand
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur
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( तोस )
अनिरूद्ध हरणज में कर्यु दुःख हरण ए सार । सामला सुख ऊपजे कहे जयसागर ब्रह्मचार जी ॥
४६ अभयकुमार प्रबन्ध (४२२६)
उक्त प्रवन्ध पदमराज कृत हिन्दी काव्य है जिसमें अभयकुमार के जीवन पर प्रकाश डाला गया है। पदमराज खरतर मच्छ के याचार्य जिनहंस के प्रशिष्य एवं पुण्य सागर के शिष्य थे। जैसलमेर नगर में ही इसकी रचना समाप्त हुई थी। प्रबन्ध का रचनाकाल संवत १६५० है। रचना राजस्थानी भाषा की है।
४७ प्रादित्यवार कथा (४२५१]
प्रस्तुत कथा पं० गंगादास की रचना है जो कारंजा के मद्रारक घमंचन्द्र के शिष्य थे । ग्रादित्यबार कथा एक लोकप्रिय कृति है जिसे उन्होंने संवत १७५० में समाप्त किया था। कथा की दो सचित्र प्रतियां उपलब्ध हुई हैं जिनमें एक भट्टारकीय दिजैन मन्दिर अजमेर में तथा दूसरी डूगरपुर के शास्त्र भण्डार में उपलब्ध हुई है । दोनों ही सचित्र प्रतियां अत्यधिक कलात्मक हैं। डुगरपुर वाली प्रति में स्वय प०अंगादास एवं भ.धमन्द्र के चित्र भी हैं। कथा की रचना शैली एवं वर्णन शैली दोनों ही अच्छी है 1
४८ कथा संग्रह (४३५८)
भद्रारक विमयकीति अजमेर गादी के प्रसिष्ठ भद्रारक थे। ये मत के साथ साथ विद्वान् एवं कवि भी ये इनकी दो रचनायें कर्णामृत पुराण एवं श्रेणिक चरित्र पहिले ही उपलब्ध हो चुकी हैं । कथा संग्रह इनकी तीसरी रचना है। इसका रचनाकाल संबत १८२७ है। इस कथा संग्रह में कनक कुमार, पय कुमार, तथा शालिभद्र की कथाएं चौपई छन्द में निबद्ध हैं। रचना की एक पाडलपि भट्रारकीय दि. जैन मन्दिर अजमेर में संग्रहीत है।
४६ चन्द्रप्रभ स्वामीनो विवाह (४३२६)
। प्रस्तुत कृति भ. नरेन्द्रकीति की है जिसे उन्होंने संबत १६०२ में छन्दोबद्ध किया था। कवि ने इस काब्य को गुजरात प्रदेश के महसाना नगर में समाप्त किया था। ये भट्टारक सुमलिकीर्ति के गुरू भ्राता भट्टारक सकलभूषण के शिष्य थे। विवाहसो भाषा एवं वर्णन शैली की दृष्टि से सामान्य है इसकी एक पाण्डुलिपि कोटा के बोरसली के मन्दिर में उपलल्ध हुई है।
५० सम्यक्त्व कौमुदी (४८२८)
जगतराय की सम्यक्त्व कौमुदी कथा हिन्दी कथा कृतियों में अच्छी कृति है। इसमें विभिन्न कथानों का संग्रह है। कवि आगरे के निवासी थे । कवि को पद्मनदि पंचविंशतिका, भागमविलास भादि पहिले हो उपलब्ध हो चुकी हैं। रचना सामान्यतः प्रन्छी है।