Book Title: Pushpa Prakaran Mala
Author(s): Purvacharya
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

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Page 18
________________ मो काबस्तिति प्रकरण. (११) कहे छे:-परभव एटले 'परावर्तभव अने ते भव एटले जे भव संबंधी कहेवानी इच्छा होय ते भव ते बन्ने भवना आयुष्यने जयन्य अने उत्कर्ष रुप वे पदनो साथे योजना करना चार भांगा (चौभंगी) याय छे. ते आ प्रमाणे-आ भवमां उत्कृष्ट आयुष्य अने परभवमां पण उत्कृष्ट आयुष्य १, आ भवर्नु उत्कृष्ट अने परभवन जघन्य २, आ भवनुं जघन्य अने परभवन उत्कृष्ट ३, तथा आ भवर्नु जघन्य अने परभवन पण जघन्य ४, आ रीते भव संवेधनो विचार श्री भगवती सूत्रना चोवीसमा शतकमां चोवीश दंडकना अनुक्रमयी पाणीओना परस्पर संवेष वडे जघन्य अने उत्कृष्ट उपपात, परिमाण, भव, काळ अने आयुष्य विगेरे प्रतिपा. दन करवाने अवसरे विस्तारथी निरुपण करेलो ले. तेने अनुसारे अहीं पण तेनो भावना संक्षेपयी करीये छीये.-आयुष्यना चारे पकारना भांगे विचार करतां संझी मनुष्य तथा तिर्यच पहेली छ नरकमां उत्कर्षथी एकांतर आठ भवो सुधी भ्रमण कर छे. ते आ प्रमाणे-कोइ संजीपंचेन्द्रिय मनुष्य सातमी सिवाय प्रथमनी छमांनी कोइ एक नरकमां उत्पन थाय, अने त्यांथी उपरीने (नीकळीने) पाछो मनुष्यमा उत्पन्न वाय, त्यांथी फरीने नरकमां जाय, ए प्रमाणे एकांतर आठ भवो करे छे. पछ। नवमे भवे ते अश्य बीजा पर्यायपणे उत्पन्न थाय छे, जघन्ययी तो आग. ळनी गाथामा कहेवाशे ते प्रमाणे बे भव करे छे. ए वात अहीं पण जाणी लेवी. एज प्रमाणे ( मनुष्य प्रमाणे) तिर्यंचने माटे पण भावना करवी. १३. भवणवणजोइकप्प-टगेवि इअ अडभवाउदु जहमा । सग सत्तमोइ तिरिओ, पण पुनाउसु यति जहन्ना ॥१४॥ १ज्यां बहने प्रस्तुत भवमा आवधार्नु कहेवु होय ते परा. वर्तमव समजतो.

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