Book Title: Pravachansara ki Ashesh Prakrit Sanskrit Shabdanukramanika
Author(s): Kundkundacharya, A N Upadhye, K R Chandra, Shobhna R Shah, H C Bhayani, Nagin J Shah
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 20
________________ कम्मरजेहिं कर्मरजोभिः 2.96 --कसाआ -कषायाः (देखो, जिदककम्मसंजुत्तं कर्मसंयुक्तम् 2.29 साआ) कम्मस्स कर्मणः 2.30 -- क साओ - कषायः (देखो, कम्माणि कर्माणि 2.93; 3.33, 44 रहिदकसाओ, समिदकसाओ) -कम्माणि - कर्माणि (देखो, -क साय - - क साय- (देखो, सकम्माणि) विसयकसाया-धिगेसु) कम्मे कर्मणि 2.31 -- क साया -कषायाः (देखो, कम्मेहि कर्मभिः 2.56, 56, 59, 87; विसयकसाया) 3.43, 69 कसायिदो कषायित: 2.96 -कम्मेहि -कर्मभिः (देखो, णाणावरणा- कहं कथम् 1.31; 2.13, 20; 3.20 दिकम्मेहिं) --कामिणो -कामिनो (देखो, अपुणब्भव -कम्मो -कर्मा (देखो, णिहदघण-- कामिणो) । घादिकम्मो, पक्खीणधादिकम्मो) कायखेदं कायखेदम् 3.50 कया कृताः 2.70 कायचे?म्हि कायचेष्टायाम् 3.11, 19 करणं करणम् 2.34 कायविराधणरहिदं कायविराधनरहितम् -करणं -करणम् (देखो, अंजलिकरणं) 3.49 करुणाभावो करुणाभावः 1.85 कायव्वं कर्तव्यम् 1.67; 3.12. करेदि करोति 2.93 काया कायाः 2.86 करेंति कुर्वन्ति 1.73 -काया -कायाः (देखो, पोग्गलकाया) -करो -करः (देखो, वधकरो) - कायाणं -कायानाम् (देखो, -कलत्त -कलत्र (देखो, गुरुकल- जीवकायाणं) तपुत्तेहिं) कायेषु कायेषु 3.18 -कलुसो -कलुषः (देखो, खविदमो- -कायेहिं -कायैः (देखो, पुग्गलकायेहिं) हकलुसो) कारणं कारणम् 2.68 - क साअ- - कषाय- (देखो, -कारणं -कारणम् (देखो, विसयकसाओगाढो) अपुणब्भवकारणं, दुक्खखय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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