Book Title: Pravachansara ki Ashesh Prakrit Sanskrit Shabdanukramanika
Author(s): Kundkundacharya, A N Upadhye, K R Chandra, Shobhna R Shah, H C Bhayani, Nagin J Shah
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 62
________________ समणेहिं श्रमणैः 3.63 समणो श्रमण: 1.14, 91, 92; 2.34, 105, 3.7, 9, 12, 13, 14, 18, 22, 23, 26, 28, 31, 32, 33, 36, 40, 41, 43, 44, 50, 64, 66, 70 - समवायो - समवाय: (देखो, ठिदिसंभवणाससमवायो) समवेदं समवेतम् 2.10 समसत्तुबंधुवग्गो समशत्रुबन्धुवर्ग : 3.41 समसुहदुक्खो समसुखदुःखः 1.14; 2.103; 3.41 समस्सिदे समाश्रितान् 1.65 : समा समाः 2.73 समन्तसर्वाक्षसौख्यज्ञानाढ्यः 2.106 समारद्धं समारब्धम् 2.32 समदो समतः 2.73 समधिदव्वं समध्येतव्यम् 1.86 समभावो समभाव: 3.59 समभिहदो श्रमाभिहतः 3.30 समारद्धे समारब्धायाम् 3.11 समावणओ श्रमापनय: 3.47 समासेज्ज समासाद्य 1.5 समय समय 2.49 -समासो -समास: (देखो, बंधसमासो) समिदकसाओ शमितकषायः 3.68 समिदस्स समितस्य 3.17 समयम्हि समये 3.45 - समयम्हि समये (देखो, एकसमयम्हि ) समिदिद - समितित (देखो, 57 - समवट्ठिदो - समवस्थितः (देखो, सहावसमवट्ठिदो) समत्तं समस्तम् 1.59 समंत समन्तत: 1.22 समंतदो समन्तत: 1.32,47 समंतसव्वक्खसोक्खणाणड्डो समयस्स समयस्य 2.50,51 -समया - समयाः (देखो, परसमया, सगसमया) - समयिग - समयिकाः (देखो, परसमयिग) समये समये 2.10, 51, 89, 96; 3.71 समलोट्ठकंचणो समलोष्टकाञ्चन: 3.41 समवदि समवस्थितः 2.104 Jain Education International गुणसमिदिद, वदसमिदिदियरोधो) -समिदो - समित: (देखो, पंचसमिदो) - समिद्धं - समृद्धम् (देखो, अच्वंतफलसमिद्धं) - समिद्धस्स - समृद्धस्य (देखो, सव्वक्ख गुणसमिद्धस्स) समुट्ठिदा समुत्थिताः 2.107 For Private & Personal Use Only .www.jainelibrary.org

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