Book Title: Pravachansara ki Ashesh Prakrit Sanskrit Shabdanukramanika
Author(s): Kundkundacharya, A N Upadhye, K R Chandra, Shobhna R Shah, H C Bhayani, Nagin J Shah
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 56
________________ विणा विना 1.10, 25, 27; 2.8, 18 -वियप्पं -विकल्पम् (देखो, सवियप्पं) विणासो विनाशः 1.17, 18 -वियप्पो -विकल्पः (देखो, विणेह विनेह 1.10. अट्ठवियप्पो) विण्णाणं विज्ञानम् 1.58 वियाण विजानीहि 1.64 विण्णादं विज्ञातम् 2.38 वियाणादि विजानाति 3.33 -वित्थडं -विस्तृतम् (देखो, अत्थ- वियाणित्ता विज्ञाय 3.22 - वित्थड) -विरत्तो -विरक्तः (देखो, विसयविरत्तो) वित्थडा विस्तृता 1.61 विरहिया विरहिता 1.45 वित्थारो विस्तार: 2.15 विरागचरियम्हि विरागचरिते 1.92 -विदिद -विदित (देखो, -विराधण -विराधन (देखो, . सुविदिदपयत्थसुत्तो, अविदिद- कायविराधणरहिदं) परमत्थेसु) विलओ विलयः 2.27 विदिदत्थो विदितार्थः 1.78 -विलया -विलयौ (देखो, संभवविदिदपदत्था विदितपदार्थाः 3.73 विलया) विद्धिं वृद्धिम् 1.73 विवरीदं विपरीतम् 3.55 -विधं -विधम् (देखो, अणेगविध) -विवरीदो -विपरीतः (देखो, तव्वि-विधा -विधाः (देखो, अणेगविधा) वरीदो) विधाणेण विधानेन 1.82 विवासे विवासे 3.13 -विभत्त- -विभक्त- (देखो, पविभत्त- विविधे विविधान् 2.83 पदेसत्तं) विविहं विविधम् 1.70 विमलं विमलम् 1.59 विविहलक्खणाणं विविधलक्षणानाम् -विमुक्कं -विमुक्तम् (देखो, मुच्छारंभ- 2.5 विमुक्कं) विविहाणि विविधानि 1.74;3.44 विमुच्चदे विमुच्यते 2.94 विविहेहिं विविधैः 3.43 विमूढो विमूढः 1.43 विविहो विविधः 1.84 विमोचिदो विमोचित: 3.2 विसएसु विषयेषु 1.63,71,85 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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