Book Title: Pravachansara ki Ashesh Prakrit Sanskrit Shabdanukramanika
Author(s): Kundkundacharya, A N Upadhye, K R Chandra, Shobhna R Shah, H C Bhayani, Nagin J Shah
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 22
________________ कुव्वंति कुर्वन्ति 1.67 खयं क्षयम् 1.60 कुव्वदु करोतु 3.51 -खयं -क्षयम् (देखो, मोहक्खयं) -कुसलो -कुशलः (देखो, आगम- खलु खलु 1.7, 18, 21, 38, 80; कुसलो) ___2.1, 5, 10, 15, 17, 26; के के 1.39 3.9, 29 केण केन 2.23 खवयंतं क्षपयन्तम् 1.42 केणवि केनापि 1.18 खविदकम्मंसा क्षपितकर्मांशाः 1.82 केवलं केवलम् 1.60 खविदमोहकलुसो क्षपितमोहकलुषः केवलणाणिस्स केवलज्ञानिन: 1.20 2.104 केवलदेहो केवलदेहः 3.28 खवीय क्षपयित्वा 2.103 केवली केवली 1.32 खवेदि क्षपयति 1.78; 2.102; 3.33, केवलेण केवलेन 1.58 38, 38, 44 -केसं- -केश- (देखो, उप्पाडिद- खाइगा क्षायिका 1.45 . केसमंसुगं) खाइगं क्षायिकम् 1.42, 50 कोई कश्चित् 2.18, 24, 27, 28 खाइयं क्षायिकम् 1.47 -कोडीहिं -कोटिभिः (देखो, खिदिसयणं क्षितिशयनम् 3.8 भवसयसहस्सकोडीहिं) खीयदि क्षीयते 1.86 खु खलु 2.10 -खओ -क्षयः (देखो, कम्मक्खओ) खुब्भदि क्षुभ्यति 1.83 खंधा स्कन्धाः 2.75, 77 खेत्तं क्षेत्रम् 3.22 खणभंगसमुब्भवे क्षणभङ्गसमुद्भवे खेत्ते क्षेत्रे 1.3 2.27 -खेदं -खेदम् (देखो, कायखेदं) खमं क्षमाम् 3.31 खेदो खेदः 1.60 खमणे क्षपणे 3.15 -खोह- -क्षोभ- (देखो, मोहक्खोह-खय- -क्षय- (देखो, दुक्ख- विहीणो) खयकारणं) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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