Book Title: Pravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Author(s): Bhuvansuri
Publisher: Vijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad

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Page 10
________________ नोहरा में और टाउनहाल आदि स्थानों में गोठया है। जिन्हें सुनने . के लिये भाई बहन समय से आधा घन्टा पहले आकार के जगह प्राप्त करलेते हैं। जो दश मिनट दर ने आते हैं उन्हें जगह भी नहीं मिलती. है । एसी है इनकी अदभुत व्याख्यान शक्ति । धन्य हो पूज्य गुरुदेव श्री को कि जिनकी अनोद देशना के प्रतापः . से अनेक गांवो में महा मंगलकारी श्री उपधान तप जैसे विशाल कार्यः . हुये हैं। पू. आ. दे. श्री के व्याख्यानों का उतारा उनके प्रिय शिष्य रत्ल' . पूज्य विद्वान मुनिराज श्री जिनचन्द्र विजय जी महाराज श्री करते थे। तो श्री को विनती की कि “ साहब" इन प्रवचनों का पुस्तक छप जाय तो हजारों आत्माओं को लाभ मिले । पूज्य महाराज श्री ने दीघ दृष्टि से विचार कर के पुज्य आवाय देव श्री के प्रवचनों को सुन्दर रीत से लिख के तैयार किये हैं। पूज्य महाराज श्री को लेखन शक्ति इतनी ननमोहक है कि . वांचन वे फिर उठने का दिल ही नहीं होता है। पूज्य महाराज श्री ने आजतक दो हजार पाना का लखाण अपनी. आगवी और रोचक शैली से तैयार किया है । वो वांचने के बाद मेरे दिल में पूज्य महाराज श्री के प्रति अपार मान उद्भवा था । पूज्य आचार्य देव श्री को व्याख्यान सिवाय कुछ भी चिन्ता नहीं करनी पड़ती । तेओ श्री का सब काम पूज्य जिनचन्द्रजी विजयजी महाराज सम्हाल लेते हैं। पूज्य आचार्य देव श्री के तात्विक प्रवचम और पूज्य महाराज श्री की लोकनाड को परख के दी जाती शुभ प्रेरणा इन दोनों का समागम होने के बाद धर्म के कार्यों में क्या कमी रहे ।। - इन गुरु शिष्य की जोड़ी जहां जाती है वहां धर्म महोत्सव का अट जमता है । मानो शासन प्रभावना का दिया आया । पूज्य जिनचन्द्र विजयजी महाराज श्री की संसारी माताजी सेवा. भावी तपस्वी साध्वीजी श्री प्रशप्रभा श्री जी महाराज हैं। उन के

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