Book Title: Pratyekbuddh Charitram
Author(s): Jain Dharm Vidya Prasarak Varg
Publisher: Jain Dharm Vidya Prasarak Varg

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Page 303
________________ जो दुःखं महत्तमं // ततो निकाचितं कर्म / बझं रतिविलासया ॥३ए // अथो रतिविलासी सा। कुमारविरहातुरा // तस्थौ उःस्था मौनवती / नानजोजनबर्जिता // 40 // त्रिविक्रम चरित्र कुमारोऽथ / नत्वा स्तुत्वा मनोजवं // जवनझारमायातो / नापश्यन्निजपादुके // 1 // शंज३७५ लीमविक्षोक्याथोचिंतयचितोऽस्मि हा // मया हि मुषिताश्चौरा / अनयाई पुनश्वलात् // 42 // अथो कथंचिजत्वेत-स्तस्याः कुर्वे प्रतिक्रियां // जातेन तेन किं यो नो / अपकारकरोऽरिषु // 43 // अत्रांतरे कुमारेण / ददृशेऽवतरन् दिवः // एको विद्याधरः पुष्प-बाणपूजनहेतवे // 4 // स समेत्यानमन्मारं / कुमारं चान्यधादिति // विलक्षवदनः कस्मा-बयसे त्वं नरोत्तम // 45 // शंजलीचेष्टितं सर्व / तेनानाणि तदग्रतः॥ ततो विद्याधरोऽवादी-सर्वस्तेऽर्थः करिष्यते // 46 // परं दिनत्रयं जज / त्वमत्रैवातिवाहय // पुरःप्रयोजनं कृत्वा। यथागडाम्यहं पुनः॥४॥इहैव अवता स्थेयं / न गंतव्यं वनांतरे // शिक्षयित्वेति दत्वा च।नोजनं त्रिदिनोचित / 47 // गते विद्याधरे स्थित्वा / तत्रैव दिवसघ्यं // कुमारोऽचिंतयत्कस्मा-निषिर्क गमनं दने // भए // किं तत्रास्तीति पश्यामि / ततो निर्गत्य मंदिरात् // नमन् वनेऽयमादी- / / Base

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