Book Title: Pratyekbuddh Charitram
Author(s): Jain Dharm Vidya Prasarak Varg
Publisher: Jain Dharm Vidya Prasarak Varg
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________________ EVI मुनि ततः // 70 // तद् दृष्ट्वा विस्मितस्वांत-स्तमवीचन्मणिप्रजः // विबुधा अपि मुहाति।। कदाचिदिति निश्चितं // 1 // विबुधेषूत्तमेनापि / यत्वयासौ नमस्कृता // आदौ मदनरेंचरित्रं || खात्री मात्रमुचंध्य सन्मुनि // 7 // असौ सत्युत्तमेत्यस्मा-न्न पुनर्मुनिपुंगवात् // सूर्या धिकप्रकाशा स्या-निर्मलापि न चैछिका // 33 // देवोऽवददिदं जऽ / सत्यं पर मियं मम // धर्माचार्योऽजवत्तस्मा-न्माननीया मुनेरपि // A // तथाहिं शृणु वृत्तांत / सुदर्शनपुरेश्वरौ // मनोरथयुगवाहु-नामानौ द्वौ सहोदरौ // 5 // हेतोः कुतोऽप्यनिर्वाच्यात् / खजनानुजमग्रजः // जैघान घनदुर्ध्यानः / स पपात च भूतले // 76 // युगबाहुमहापीमाजातरोषः पतन्नपि // नरकांधेऽनया सत्या / सहचोरज्जुनोध्धृतः // 7 // अस्या वचनपीयूष -यूषमाखादयन् रसात् // स मृतः पंचमे कटपे-जिवदिंअसमः सुरः // // विद्याधर से | एवाहं / देवः सेयं महासती / विद्याधरे ध्यायतीति / देवोऽवादीन्महासतीं // // ज / यसोचते तुज्यं / कार्य तन्मे समांदिश // तयोक्तं मम पर्याप्त-मन्येनातो यदा जिनः // - // तथापि मम दर्षाय / वद किंचित्प्रयोजनं // देवेनेत्युदितेऽवादी-न्महासतीमतः || - - - .: :444 P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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