Book Title: Pratyekbuddh Charitram
Author(s): Jain Dharm Vidya Prasarak Varg
Publisher: Jain Dharm Vidya Prasarak Varg

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Page 351
________________ __ चरित्रं जोति जल्पंत बाटोपा--सुनटा विकटार्चिषः // धावंतस्ते क्रुधा तूर्ण-माजग्मुर्नमिसन्निधौ / / // 56 // नापराध्यप्ययं नीत्या-दृतश्रमणवेषनृत् // हन्यः कौनिहंतव्यो / युध्यमानो हि सन्मुखं // 57 // करालकरवालेन / निघ्नन्नेको मुनीश्वरं // समागत्यांतरैकेन / वदतेति निवारितः // 50 // युग्मं // हा नाथ रक्ष रक्षति / विलपंत्यो नृपाग्रतः // अंतःपुर्यों बलानीता / धृत्वा केशेषु तैनटैः // एए // स्वरूपस्थेऽपि सर्वस्मि-नंतःपुरपुरादिके // श्रीमन्नमिपरीक्षायै / दर्शयित्वेति मायया // 60 // कुपितोऽयं मुनिः किंचि-युद्धश्रद्धोऽनवन्न वा // अवधिज्ञानतः स्वर्ग-लोकस्वामीत्यलोकत // 61 // अंतःपुरीपुरीराज्य-राष्ट्रादिकमिदं मया // त्यक्तं तदस्य का चिंता / निर्ममस्य ममाधुना // 6 // त्यक्तस्य नोचिता चिंतो --पछुतस्याप्यमुष्य मे // कुरैदयमाणं हि / वांतं को नाम रक्षति // 3 // एवं विचिं. त्य निश्चितं / गबंतं पथि निःस्पृहं // इंद्रो मुनींद्रमाक्षीद् / कानानिःक्रोधमानसं // 6 // अयाकंपितचित्तस्य / कोनं कर्तुमना मुनेः // हरिः पुनः समायासी-हिप्ररूपधरस्तदा // || // 65 // ऊचे चेति महासत्व / मिथिलेयं पुरी परैः // दह्यते. गृह्यते चैत-त्वत्पुतिःपुरं / / .. .P.P.AC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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