Book Title: Pratyekbuddh Charitram
Author(s): Jain Dharm Vidya Prasarak Varg
Publisher: Jain Dharm Vidya Prasarak Varg

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Page 352
________________ चरित्रं 351 परं // 66 // तत्तेऽधुना गतं नूनं / धैर्य वीर्य बरं च तत् // अन्यथा कथमेतादृक् / प्रत्यक्षं त्वमुपेक्षसे // 6 // नमिरुवाच-नगर्या दह्यमानायां / मम किंचिन्न दह्यते // मम किंचिछिपदै / गृह्यते च न किंचन // 67 // यौर्जिताः शक्रचक्यथा। विश्वे विश्वविमंबकैः ॥ते. षां कर्मविपक्षाणां / हननेऽहं समुद्यतः // ६ए // तन्मे धैर्य च वीर्य च / संप्रत्येवोदितं हि. ज // इंजः-प्रत्यक्षस्ते परीवारो / हन्यते पश्य शत्रुनिः॥ 70 // नमिः-अनुकूलोऽनुचारी च। तात्विको हितकारकः // धर्मों मेऽथ परीवारो / हन्यते न स केनचित् // 1 // मित्रपुत्रकलत्रादि-परिवारो न तात्विकः // सर्वः खार्थपरो लोकः / सशोकश्चात्मचिंतया // 7 // गते मृते हिते पुंसि / सर्वः स्वार्थ हि रोदिति // तस्माधर्मेतरः कोऽपि / संसारे न स्वकः खलु // 3 // इंड:-आत्रों जीतो जवेद्रयः / परोऽपि किं पुनर्निजः ॥धारककस्तवैवं हि / दात्रो धर्मोऽपि हीयते // 4 // नमिः-रदायित्वांतरंगारे-रात्मानमुपदेशतः // रक्षणीयो जनोऽप्येष / क्षात्रो धर्मोऽस्ति तात्विकः // 5 // धमों जीवदयामूलः / सर्वः प्रतिपादितः शत्रूणां हननेऽमीषां / स विनश्यति न दणं // 6 // इंद्रः-एतेषां निघ्नतां लोकान् / सत्यां P.P.AC. Gunratnasuri M.S. un Gun Aaradhak Trust

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