Book Title: Pratyekbuddh Charitram
Author(s): Jain Dharm Vidya Prasarak Varg
Publisher: Jain Dharm Vidya Prasarak Varg
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________________ नैमिगृह्यान् महानटान् // निगृह्य गृह्यतेस्माशु / सर्वस्वमपि शत्रुतिः // 45 // ततस्तैः सकला || शासु / ज्वालितो ज्वलनो घनं // ततः सर्वा पुरी जझे। ज्वालामालाकरालिता // 46 // शिचरित्रं शवो रोदनं चकु-विलपंतिस्म योषितः॥ नरा हाकारपूत्कारान् / विविधान् विदधुस्तदा // ३४ए // 4 // हा नमे नूपतेऽस्माकं / खामिनि त्वयि सत्यपि // गृह्यतेऽस्मारिनिः सर्व / दह्यते वपुरंप्यथ // 4 // अतो नृप कृपां कृत्वा / रक्ष रक्ष क्षतादितः॥ इत्यारवोऽजवद घोरस्तथा बुंबारवः पुरे // 45 // अथारिसैन्यनाथेन / प्रोक्तं रे सांप्रतं नमिः // जीवन् बध्वा समानेयः। स कुत्रास्त्यत्र नेक्ष्यते // 50 // एकेनोक्तं महाराज / त्वत्तो जीतो नमिः पुरं // |-विहायांतःपुरं सर्व-मादाय प्रपलायितः // 51 // तेनोक्तमनुगळंतु / रेरे धृत्वानयंतु तं // | उत्पाटितकरालास्त्रा / अन्वधावंस्ततो जटाः // 55 // कियत्रं प्रयासि त्व-मन्वायाता ईमे वयं // अयैव स्फोटयिष्यामो हृदयं / तव मा व्रज // 53 // मुषिता श्रीस्त्वयास्माकमोषिताश्च वयं वने // त्वया तथा कथाशेषी-कृता नोऽशेषपूर्वजाः // 54 // तत्सारोऽवस| रोऽस्मानि-चिरादयमवाप्यत // अथास्माकं कृतं पश्य / पश्यन्नपि विनश्यसि // 55 // || P.P.AC.Gunratnasun M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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