Book Title: Pratyekbuddh Charitram
Author(s): Jain Dharm Vidya Prasarak Varg
Publisher: Jain Dharm Vidya Prasarak Varg

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Page 348
________________ प्रत्येक कि। शुज्जखमावलोकनं // सुनिश्चितमभूदय / फलमस्य विचार्यते // 3 // अचिरान्नन्वहं लोक-प्रासादस्यास्य मस्तके // थारोहणं करिष्यामि / गतपापमलोज्ज्वलः // // यादृशो. ऽद्य मया स्वप्ने / प्रासादः परमोत्तमः // विलोकितस्तादृगेव / दृष्टोऽभूत्पूर्वमप्यहो // 25 // इत्येवं स्मरतो राज्ञो / जाता जातिस्मृतिः दणात् // सर्वे पूर्वनवा दृष्टाः / षमप्यत्र निवेदि. ताः // 26 // चिंतितं च महाशुक्रे / देवलोके विलोकितं // पुष्पोत्तरविमानं यत् / प्रासादः स समीक्षितः // 27 // व तदेवं सुख केदं / क्व सिता सिकता क च // व क्षीरं झारनीर क / क रत्नं क च कर्करः॥ 27 // कल्पेऽत्रानल्पसंकल्प-मात्रलयं चिरं सुख // नुक्त्वा तृप्तो न यो जीवः। स तृप्यत्यधुना कथं // श्ए // तद्विहायाखिलं नानो-पद्रवोपयुतं पुतं ॥श्रित्वा सत्संयमाचारं / प्राप्नोमि शिवमव्ययं // 30 // शुझबुष्ट्या विचार्येति / तदेवोत्सवपूवकं // लक्ष्मीप्राज्ये निजे राज्ये / पुत्र प्रातिष्टपन्नृपः // 31 // गत्वोद्यानवनं राजा / नमिर्निः संगमानसः // बुद्धो वलयदृष्टांते-नार्हतं व्रतमाददे // 32 // तथा चोक्तं-बहूणं सहयं सोच्चा / एगस्स य असदयं // वलयाणं नमीराया / निरकंतो मिहिलाहिवो // 33 // निःसं. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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