Book Title: Pratyekbuddh Charitram
Author(s): Jain Dharm Vidya Prasarak Varg
Publisher: Jain Dharm Vidya Prasarak Varg
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________________ गो देवतादत्त लिंगोऽनंगोलितांगकः // राजर्षिर्न मिरन्यत्र / विहर्तु प्राचलत्ततः // 3 // राज्य विदधता प्राज्य-गुणावर्जितमानसाः // सकला मिथिलालोकाः / सशोका जझिरे तदा // चरित्रं // 35 // वला विलपंत्तिस्म / नमिमार्गानुगा इति // त्वदेकनाथा हे नाथ / विहायास्मान् 340 क गछसि // 36 // अज्ञानाद्विहितं कंचि-दपराधं दमख नः // प्रणिपातेन तुष्यति / वि. पदेष्वपि सत्तमाः // 37 // लोका अपि सशोकांतःकरणाः करुणस्वरं // रुदंतो विलपंतश्चान्वगन्नमिसन्मुखं // 30 // इत्यालापैर्विलापैश्च / पाषाणमपि नेदकैः // वज्रानेयं नैव जिन्न / मनागपि मुनेर्मनः // 35 // तत्तादृगवधिज्ञाना-सौधर्मेसो व्यलोकयत् // अचिंतयदहो किंचि-निर्ममत्वं नमेर्महान् // 40 // तदितः सांप्रतं गत्वा / कृत्वा तस्य परीक्षणं // ॥प्रणम्य रम्यधैर्य तं / समायामि खसद्मनि // 41 // एवं विचिंत्य सौधर्मा-धिपतिर्देवलोकतः // एत्येति मिथिलापुर्या / विचक्रे देवमायया // 42 // अकस्मान्न मिराजस्य / वैरिणो निखिला अपि // एत्योत्पाटितशस्त्रौघा। मिथिलामुदवेष्टयन् // 3 // मार्यतामरिसंघातो। ध्रियतामपरे जनाः // व्यता पुरसर्वस्व-मिति शत्रुपति गौ // 4 // ततः प्रविश्य पुर्यंत- // .P.P.AC. Guntainasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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