Book Title: Pratyekbuddh Charitram
Author(s): Jain Dharm Vidya Prasarak Varg
Publisher: Jain Dharm Vidya Prasarak Varg

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Page 346
________________ प्रत्येक 235 बहवः सुनवोऽजवन् // 1 // चिरात्पूर्वकर्मयोगा-न्नीरोगस्यापि भूपतेः // अकस्माद्रजनी | जागे / देहे दाहज्वरोऽजनि // 5 // जनिता वैद्यसंदोहै-रुपचारपरंपरा // मांत्रिकर्मत्रतं. चरित्रं | प्राय / तन्नियंत्रणहेतवे // 3 // परं कोऽपि गुणो नाभूत / कर्मणःप्रातिकूल्यतः॥तस्मिन्नेवा नुकले यत् / फलंत्येतेऽखिला अपि // 4 // षएमासांतेऽन्यदा दक्ष-वैद्येनैकेन भूजुजः ॥शरीरे चांदनः सेक / उपचारो निरूपितः // 5 // अष्टोत्तरसहस्रं या / अंतःपुर्यों नरेशितुः // ताः स्वयं प्रियजक्त्याथ / चक्रुश्चंदनघर्षणं // 6 // परस्परास्फलन्नाना-वलयालिसमुत्थितः घोरो रखो नमे राज्ञः / कर्णशूल मिव व्यधात् // 7 // दुःश्रवोऽयं रवो नो मे / रोचते श्रवसोरिति // नदितो भूजुजावादी-दमात्योंतःपुरीपुरः // 7 // एकैकं वलयं बाहा-ववैधव्यस्य लक्षणं // स्थापयित्वा तदन्यानि / सर्वाण्यपनयंत्वितः ॥ए॥ तथा कृत्वा समस्तानि स्तानिश्चंदनघर्षणं // सहर्षानिरिवान्योन्यं / क्रियतेस्म निरंतरं // 10 // स शृण्वन् घर्षणारावं / न ताहग्दुःश्रवं रवं // नृपोऽपृबदतिकस्थं / स्थितो घोरारवः कथं // 11 // तेनोक्तं देव देवी नि-वलयान्यखिलान्यपि // एकैकं स्थापयित्वा ता-न्यपनीतानि पाणितः // 15 // || P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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