Book Title: Pratyekbuddh Charitram
Author(s): Jain Dharm Vidya Prasarak Varg
Publisher: Jain Dharm Vidya Prasarak Varg

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Page 332
________________ चरित्रं 331 षयान् यस्मा---दायतौ तेऽतिदुःखदाः // 4 // कामतृष्णामपाकर्तु / यःस्त्रीसंगेन कांदति // // तृषां शशमिषुस्तप्त-त्रपुपानात्स मूढधीः // 4 // अंगनासंगमस्त्याज्यो। विशुद्धात्मनिरंगिनिः॥ विशेषेण परस्त्रीणां / संगरंगं करोति कः // ४ए // नरकादिगतिधारं / वधबंधनिबंधनं // परांगनापरिष्वंगं / वर्जयेय॑चेतनः // 50 // विशेषेण सतीनां यः / शीलनंग चि. कोर्षति // विनश्यत्येव सोऽवश्यं / दशानन श्वाचिरात् // 51 // श्मां कामयसे कामा-तुरो वत्स मणिप्रज॥ परं नायमभिप्राय / आयतौ ते सुखायते ॥५॥शक्तः शक्रोऽपि नोकतु / सतीनां शीलखमनं // अधोधो याति वांडोत्थ-पापनारेण केवलं // 53 // व्रज पूरं नरकांतात् / सतामगम्याऽध्रुवं पथो ह्यस्मात् // व्यावर्तय कुशलेल्छु-र्यदि वत्स मनोरथं सौवं // 54 // इति साधुवचःसाघु-सुधामापिबतः संतः॥ रागोरगविषावेगो। व्यरमत्तस्य तदणं // 56 // जन्मीलितविवेकाक्षः / प्रकटीभूतचेतनः // उत्थाय मदनरेखां / नत्वा क्षमयतिस्म सः // 5 // यदयुक्तं मयोक्तं ते / तत्दमख क्षमापरे // अद्यप्रति मेऽसि त्वं / जननीलगिनीसमा // 57 // अथो पप्रत सा साधु / जगवन्मम नंदनौ // उत्तमौ वाधमौ जी- || PP.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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