Book Title: Pratyekbuddh Charitram
Author(s): Jain Dharm Vidya Prasarak Varg
Publisher: Jain Dharm Vidya Prasarak Varg
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________________ | मानो विना मात्रा / कथं जीवति बालकः // 25 // तन्मा मुंच सुतोपाते - तराहं यत्रया प्रत्येक मात्र (धुता // तन्मय जीवितं दत्तं / पुत्रनिदां प्रदेाथ // 26 // पश्यन्ननन्यसामान्य-रूपा तां च स मोहितः // ऊचे सर्व करिष्यामि / चेत्पतिं मां प्रपद्यसे // 17 // पुत्रोऽहं मणिचूमस्य। SU सर्व विद्याधराधिपः // मणिप्रजानिधो गह-नस्मि नंदीश्वरेऽधुना // 20 // तत्रोपॉत्तंव्रतस्तात -स्तपस्यति निरंतरं // तस्याद्य वरिवस्यायै / नमस्यायै च याम्यहं ॥शए / श्रेणियाधिनाथं मां / रत्नाकरपुरेश्वरं // प्रतिपयस्व जर्तारं / जव त्वं खेचरेश्वरी // ३०॥सतीमतलिका सैवं / शीलनंगकरं वचः॥ श्रवसा पुःश्रवं श्रुत्वा / चिंतयामास चेतसि // 31 // मनोरथादहं नष्टा / पतितास्य पुनः करे // पलाय्य व्याघ्रतः सिंह-मुखे निपतनं ह्यदः // 3 // विङ्मे रूपमिदं स्थाने / स्थानेऽनबैंककारणं // परमावर्त्य साम्नेन / पुत्रसारां करोम्यहं // // 33 // इति ध्यात्वावदनद्र / जातमात्रो मया सुतः // मुक्तोऽस्ति कानने रौजे / तस्यांधारो मन कश्चन // 34 // चित्ते तकिरहार्साया / मम नायाति किंचन // मेलयादौं सुतं पश्चा करिष्यामि त्वदीहितं // 35 // हर्षोझासितचित्तः स / विद्यानुदप्ग्रजापत // प्राप्तीदेवताख्या-|| P.P.AC Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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