Book Title: Pratyekbuddh Charitram
Author(s): Jain Dharm Vidya Prasarak Varg
Publisher: Jain Dharm Vidya Prasarak Varg
View full book text
________________ प्रत्येक न्मे / त्वत्पुत्रोदंतमादितः // 36 // मिथिलानगरीशेन / राज्ञा पद्मरथेन सः // त्वत्पुत्रो दुर्दमा- || | श्वेन / हृतेनादार्श कानने // 37 // अत्यंतोत्पन्नसौहार्द-स्तं समादाय बालकं ॥आसिलिंचरित्रं ग मुहुर्वक्त्रे / चुचुंब मुमुदेऽपि च // 30 // अन्वागतेन सैन्येन / समं स्वपुरमाप्य सः॥ प्रियायै पुष्पमालायै / ददौ साप्याप संमदं // 35 // प्राप्ते ताभ्यामपुत्राच्यां / तादृग्गुणगणे. गजे // यो हर्षों व्यापि तं वित्त-स्तच्चिते ज्ञानिनोऽथवा // 40 // मेरौ कल्पवयुक्ल-पके वार्धिरिवोल्वणः // वर्धमानोऽस्ति पुत्रस्ते / तचिंतां मा कृथा वृथा // 41 // निश्चितीभूय जऽथ / प्रतिपद्यस्व मां पतिं // ततो नंदीश्वरायेषु / तीर्थयात्राविधानतः // 45 // धर्ममर्थ च कामं च / बजमाना निरंतरं // मनुष्यजन्मसाफल्यं / त्वं विधेहि विचरणे // 43 // श्रुत्वैति मदनरेखा / चिंतयामास हा मया // कि कार्यमथवा कुर्वे-ऽधुना कालविलंबनं // // 4 // ध्यात्वेति सावदन / श्रीमन्नंदीश्वरादिषु // यावां कारय मेऽवश्यं / करिष्येऽजीप्सितं ततः // 45 // पुत्रं मदनरेखायां / विज्ञायासक्तमानसं // प्रारेले देशनां साधुः / का- // मवृक्षकुलारिकां // 46 // यस्य चित्ते सुखाकांक्षा / तात्विको स न सेवते // आसक्त्या वि- / ADIGuniatnasuri M.S. Jun Gun Aradhak Trust PAY

Page Navigation
1 ... 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356