Book Title: Pratyekbuddh Charitram
Author(s): Jain Dharm Vidya Prasarak Varg
Publisher: Jain Dharm Vidya Prasarak Varg
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________________ प्रत्येक ममिरित्यदान्मुदा // 3 // कंपडवन्मेरुगिरी सुरत्नं / खनाविवासादित फिरुचैः // अत्यल्प कालात्सकलाः कलाः सं / गृह्णन्नमियॊवनमासलाद // 4 // दिवाकुवंशोन्नवकन्यकाना-मष्टो त्तरं चारुतरं सहस्रं / समं कुमारेण महर्गन्नि-विवाहितं पद्मरथेन राज्ञा // 5 // अथा३३६ न्यदा पद्मरथ-नृप्रतातो महामुनिः / / जयसेनस्तत्र पुत्र-प्रवोधाय समागमत् // 6 // नं तुं तातं समायातो। रोजापि सपरिछदः // मुनीश्वरः सुधादेश्यां / देशनां तत्पुरोऽकरोत् // // 7 // संसारकूपे विषयादिसौख्य-माखादयंतो मधुबिंदुतुल्यं // तिति निश्चितहृदो ज. मा ये / तेऽनंतपुःखान्यचिरावते // 7 // विगाह्य राज्यांबुनिधिं सुखाझै-श्वर्यादिरत्नान्य चिराद् गृहीत्वा // ये संयम पोतमिवाश्रयंते / तरंति ते लोलधियो त्रुमति // ए // इत्यादिसाधुवचनैः / प्रतिबुद्धमना नमि // राज्येऽनिषिच्य जग्राह / तातांते संयम नृपः // 10 // पुष्पमालापि शिश्राय / संयम भुजुजा समं // विजहतुर्महीपृष्टे / ध्वस्तमोंहावुजावपि // // 11 // घातिकर्म क्षयं कृत्वा / प्राप्य केवलमुज्ज्वलं // प्रतिबोध्यानेकलोका-नीयतुदंपती / शिवं // 12 // न्यायेन पालयन् राज्यं / प्रतापाक्रांतभूतलः // बुजुजे विषयान्नाना-विधाः | P.P.AC.Gunratrvasun M.S.

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