Book Title: Pratyekbuddh Charitram
Author(s): Jain Dharm Vidya Prasarak Varg
Publisher: Jain Dharm Vidya Prasarak Varg
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________________ प्रत्येक | यांबु पातुं // ए५ // मोहो नैव विधातव्यो / नव्यैः संसारकारणं // संबंधान् विदधे सर्वान् / / जीवः सर्वांगिनिः सह // ए३ // तदत्र कुत्र पुत्रादि--प्रतिबंधो विधीयते // इत्यायुपदेशाचरित्रं त्सा / बुध्यतेस्म विशेषतः // ए४ // कर्म निर्जराहेतुं / प्रवज्यां लातुमुद्यतां // निर्जरोऽवद३३५ दागछ / पुत्रास्यं दर्शयामि ते // 5 // तयोक्तमथ मे पूर्ण / पुत्रालोकेन सांप्रतं // स्वसाध्यं साधयिष्यामि / प्रवज्याश्रयणादहं // ए६ // त्वमत्रानयनाजातो / महोपकृतिकृन्मम // अथ स्वस्थानकं याहि / कुर्याः सम्यक्त्वमुज्ज्वलं // 7 // तयैवमुदितो देवो / मुदितश्रीमहत्तरां नत्वा मदनरेखां च / देवलोकं निजं ययौ // ए // प्रकाशितस्ववृत्तांता / नितांतानंदितांतरा॥ दीक्षां महत्तरापार्श्वे / ललौ सा लोलतोनिता // एए // गृहंती द्विविधां शिदा / चा. रित्राचारतत्परा // विजहार महीपीठे / श्रीमहत्तरया सह // 500 // श्तश्च मिथिलेशस्य / राज्ञः पद्मरथस्य सः॥ मंदिरे पालितः पंच-धात्रीनिर्वर्धते शिशुः // 1 // तदागमादपदमा ये। दुर्गमा ये च भूजुजः // ते सर्वे स्वयमागत्य / नेमुः पद्मरथं नृपं // 2 // ततोऽतिसंतोषितमार्गणवजं / सुविस्मयस्मेरितविष्टपप्रजं // कृत्वोत्सवं तस्य शिशोर्नरेश्वरो। नामानिराम || P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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