Book Title: Pratyekbuddh Charitram
Author(s): Jain Dharm Vidya Prasarak Varg
Publisher: Jain Dharm Vidya Prasarak Varg
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________________ जो कथं मम // 60 // ततस्तया समग्रोऽसौ। वृत्तांतो नृपतेः पुरः / निरूपितः सहर्षोऽसौ / तां | | ववंदे मुहुर्मुहुः // ६ए // ऊचे च मातरेतद्य-पुण्यमूर्येव मूर्तया // नवत्या जगवत्योक्तं / त. चरित्र सर्व सत्यमेव हि // 70 // परं क्षत्रियधर्मोऽयं / यत्प्रारब्धं शुजाशुलं // सर्व निर्वाहयेद्धीरः 34 / कातरस्त्वंतरा त्यजेत् // 1 // विधाय संधां प्रारब्धं / बंधुना युद्धमुहतं // कथं कथय मुंचामि / त्वमेवेदं विचारय // 12 // संग्रामे नो श्मे गण्याः। पिता जाता सुतः सुहृत् // क्षत्रियाणामयं धर्मः / सर्वशास्त्रनिरूपितः // 3 // किंच-तेजोजरैकरूपाणां / स्वदेहोऽपि न पुस्त्यजः // यतो निर्वाणमायाति / वहिर्याति न शांततां // 4 // बलादुर्ग गृहीत्वेमं / प्रणम्य निजमग्रजं // पश्चाद्राज्यघ्यैश्वर्य-मपि दास्यामि बंधवे // 35 // परं मातन वाच्यं मे-धुना युद्धविमोक्षणे // इत्युक्तं भूजुजा श्रुत्वा / साध्वी चेतस्यचिंतयत् // 6 // बालबुद्धिरयं मानी। प्रारब्धं नैव मोक्ष्यति // तमत्वा चंऽयशसं / बोधयामि विवेकिनं // 7 // वंदिता नमिराजेन / धर्मलानं प्रदाय सा // समुत्थाय ततः स्थाना-लाचाहिमलाशया // // यतिनीत्यनिरुका सा। प्राविशन्नगरांतरे // तत्क्षणं प्रत्यनिशाता / चिरं 5-! PR 4 Gunraviasuri Ms.

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