Book Title: Pratyekbuddh Charitram
Author(s): Jain Dharm Vidya Prasarak Varg
Publisher: Jain Dharm Vidya Prasarak Varg

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Page 341
________________ कर्णाज्या-मितिः कस्यापि जाषितं // 46 // किमेवंध्यासि साटोपं / प्रयासोऽयं "निरर्थकः / / सुखं तिष्टाश्रयं श्रित्वा / लत्यं लावि तथा च ते // 4 // श्रुत्वैवं राझि सशकै / विचारपचरित्र रमानसे. // अज्यदुर्मत्रिणः स्वामि-न-गंतव्यमितस्त्वया // 4 // व्यावृत्त्य स्वालयं गत्वा / मेलयित्वाखिलं बलं ॥र्गरोधस्य सामग्रीं / समयां कारय प्रनो // 4 // विझोऽनुमन्य मान्यानां / मंत्रिणामिति सन्मतिं // स्थित्वा पुरांतरेऽकार्षी-तुणधान्यादिसंग्रहं ॥॥प्रयोजकानां वस्तूनां / कृत्वा संचयमाद्यं // सुखं चंद्रयशास्तस्थौ / पुरे पिहितगोपुरे // 51 // अविजिन्नप्रयाणेना-गबन्नमिनराधिपः // सुदर्शनपुरेऽजादीद् / दुर्गरोधं विरोधतः // 55 // जबल स्त्रकबोले-ऊँग सैन्यैः समंततः // वेष्टयित्वा नमिस्तस्थौ / छीपमब्धिरिवांबुनिः॥ // 53 // प्राकारसंस्थितानेक-सुलटैः सह दुस्सहं // प्रत्यहं. ढोकते युद्ध। विधातुं नमिरु द्धतः // 54 // अयं व्यतिकरः सर्वः / श्रुतो मदनरेखया // साचिंतयत्कृपावारि-पूर्णमानस. मानसा // 55 // हाहा सहोदरावेतौ / बसंधौ परस्परं // अज्ञानाछिदधानी स्तः / कथं युधमिहाधुना // 56 // मत्त उत्पत्तिमासाद्य / ब्रमतां मा चिरादसौ // अज्ञानात्संगरं कृत्वा / | P.P.A. Gurratrasuri M.S. Jun Gun Aaradhak TES

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