Book Title: Pratyekbuddh Charitram
Author(s): Jain Dharm Vidya Prasarak Varg
Publisher: Jain Dharm Vidya Prasarak Varg

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Page 340
________________ mailuro N // राच हुंकारा-सुन्यत्येव सुरासुराः // 35 // राझा कटादितं तेन / शस्तं वस्तु प्रर्दयते // खकीयमपि किं वाच्यं / तस्यैव वस्तुनोऽर्पणे // 36 // परकीयं परं वस्तु / दृष्ट्वा नूप न मु. चरित्र || ह्यते // गृह्यते नैव यो मूढ-स्तथा कुर्यात्स मुह्यति // 37 // एकस्य कुंजरस्यार्थे / स्वराज्य३३४ || मिदमद्भुतं / किं हारयस्यहंकारा-कुबुद्धिन विधीयते // 30 // वदंतं तमित्यादि-प्र कारेण गुणोल्बणं // नृपश्चंद्रयशाः प्राह / किंचित्कुपितमानसः // ३ए // पशुमात्रं गजं धर्तु / यो न शक्तः ससैन्यकः // तस्य विज्ञातवीर्यस्य / श्लाघां किं कुरुषे मुधा // 40 // याहि शिक्षा श्माः सर्वा / देहि वखामिनः पुरः // एवं तिरस्कृतो पूतः। स रोषानिरगात्ततः॥ ॥४१॥स, एत्य द्विगुणीकृत्य / कृत्य विन्नृपतेः पुरः // न्यरूपयत्स्वप्रयाण-ढक्कामयमदापयत् // 42 // रंगेण चतुरंगेण / बलेनाथ परीवृतः॥ प्राचलन्मिथिलानाथः / शत्रून्माथकरः पुरात् // 43 // दोजयन्नखिलदोणी-धरान् दोणी च कंपयन् // उमांतसागरश्रीक-श्चबन्नमिनृपो बनौ // 4 // तमायांतं समाकर्ण्य / सन्नह्य सबलो द्विधा // चंयोज्ज्वलयशाचं. -यशा अन्येतुमुद्यतः॥ 45 // ससैन्यो दैन्य निर्मुक्तो / निर्गबन्नगरान्नृपः॥ थाकर्षयत्स्व DIA " . - - - P.P.AC. Gunratnasuri M.S.. Jun Gun Aaradhak Trust

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