Book Title: Pratyekbuddh Charitram
Author(s): Jain Dharm Vidya Prasarak Varg
Publisher: Jain Dharm Vidya Prasarak Varg

View full book text
Previous | Next

Page 338
________________ प्रत्येक 337 || नमिनरेश्वरः // 13 // अन्यदा दीरमिमीर-पिंपांमुरदीधितिः // चतुर्दती गिरींद्रोच्च चंचपदणलक्षितः // 4 // विशालहस्तिशालाया। अलंकारः शुजाकृतिः // श्रीमन्नमिनचरित्रं रेंद्रस्य / मदोन्मत्तो गजोऽजनि // 15 // युग्मं // आलानस्तंनमुन्मूख्यं / मुलतः प्राचल | पुरात् // नटैरस्खलितगति-वेगवांस्तीव्रवातवत् // 16 // वजन् जवेनं हस्तींद्रों। दागती. त्य स निवृति // विदेहाख्यं ययौ चंद्र-यशसो देशमुटबणं // 17 // चिरागतमदः किंचिसुदर्शनपुरांतिके.॥ चरन् दृष्टो नरैरेत्य / तैरुक्तं भूजुजः पुरः // 17 // राज्ञापि चं यशसां। तत्तणं हृष्टचेतसा // एत्य स्वयं वशीकृत्य / हस्ती नीतः स्वमंदिरे // 25 // तदालये वि. !! लोक्यैनं / कुंजरानुचराश्चराः // आगत्य नमिराजस्य / पुर एवं व्यजिज्ञपन् // 20 // राजस्तव श्वेतदंती / चतुर्दत श्तो गतः॥ श्रीचंद्रयशसो राझो-ऽलंकरोत्यधुनालयं ॥१॥त. त्कालं. नमिभूपालः.। स्ववाचा काचिकार्पणं // कृत्वा प्रेषीन्निज' पूतं / श्रीचंद्रयशसोंतिके // 25 // स गत्वा तत्र भुपाल-सजायां निर्जयोऽवदत् // राजंस्तवेदमादिष्टं। स्पष्टं नमिन|| रजा // 23 // यदितो निर्गतो हस्ती / मदीयस्तव मंदिरे // तिष्टन् श्रुतः स च प्रेष्य - P.P.Ac Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust ..... .. . ............ ....................

Loading...

Page Navigation
1 ... 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356