Book Title: Pratyekbuddh Charitram
Author(s): Jain Dharm Vidya Prasarak Varg
Publisher: Jain Dharm Vidya Prasarak Varg

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Page 342
________________ प्रत्येक .|| संसारे हणनंगुरे // 57 // तद्दोधयामि गत्वाह-मित्यजिप्रायमात्मनः // महत्तरापुरः सर्वं / / यतिन्या विश्चकार सा // // सापि दृष्ट्वा महलानं / तत्र ज्ञानोपयोगतः // अदादाज्ञां चरित्रं महासत्यै / जनन्यै नृपयो:योः // एए // एकां साध्वीं सहादाय / प्राप्ताझा प्राचलत्ततः // 341 क्रमान्मदनरेखा सा / नमिसैन्यांतरागमत् // 60 // दृष्ट्वा संसंचमोत्थान-पूर्व दत्तशुजासनः || ॥नमिर्चक्त्या नमस्कृत्य / साध्वीपुर उपाविशत् // 61 // प्रसादोऽयं मयि महा-नथ कार्य समादिश // जक्त्या राजेति विज्ञते / साध्वी वक्तुं प्रचक्रमे // 6 // धर्माजाज्यं सुखं धर्मा --कर्मादेव श्रियो बलं // यत्किंचित्सुंदरं लोके / तधर्मस्याखिलं फलं // 63 // आराधितोमर्थितकरो / विराकोऽत्यंतफुःखदः // आराध्योऽयं विराध्यो नो। सुखामीव विचक्षणैः // 6 // स चं धो दयामूलः / सर्वहः प्रतिपादितः // स उजिन्नस्तञ्जेदे / बिन्ने मूलश्व सुमः॥ // 65 // तद्धर्मरक्षणोपायं / कृपां कृत्वा नरेश्वर // मुंचेमं जंतुसंघात-निर्घातकरणं रणं // // 66 // किं चायं ते बृहद् ब्रांती / नृपश्चंऽयशा नवेत् // तेनैवं युझसरंजं / कुर्वतो दूषणं || महत् // 67 // सविस्मयमना एत-दाकर्ण्य नृपतिर्जगौं / साध्वी चंप्रयशा एष / बृहद् जाता / / PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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