Book Title: Pratyekbuddh Charitram
Author(s): Jain Dharm Vidya Prasarak Varg
Publisher: Jain Dharm Vidya Prasarak Varg
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________________ पर बिका // // एवं चेन्नय मां न / मिथिला नगरी यथा // तत्र पुत्रमुखं दृष्ट्वा / प्रव्रज्या || माश्रयाम्यहं // 2 // एवमस्त्विति जस्पित्वा / नत्वा मुनिवरं च तां // स्वविमाने समारोप्य / स सुरः प्राचलत्ततः // 3 // दणात् श्रीमिथिलापुर्या / महिनाथ जिनेशितुः // मंदिरे मंदराच्चै-स्तरेऽवातरदंवरात् // 4 // जन्मनिष्क्रमणझान-स्थानं मलेनमेस्तथा // इति सा परमप्राप्त-प्रमोदाऽपूजयजिनान् // 6 // अत्रांतरे समायासी-देववंदनहेतवे // तत्र संवेगमालाख्या। साध्वीयुक्ता महत्तरा // 7 // सा महत्तरया जक्त्या / नता मदनरेखया // समं तया समायाता / गणिनी स्वमुपाश्रयं // // सतीमततिका साथ / क्रमान्नत्वा महासतीः // सर्वा महत्तरापार्श्वे / समेत्योपाविशत्ततः // ए॥ धर्मोपदेशयोग्यां तां। ज्ञात्वा संवैगशालिनी // संवेगमाला पारेने / देशनां पापनाशनीं // ए० // जीवोऽनादिरयं ब्रमत्यविरतं संसारवारांनिधौ / नानातामनपीमनाद्यनुजवदुःकर्मवातेरितः // तावद्यावदिदं कृपापरहृदा निर्यामकेणाहतं / तीर्थेशेन न संश्रयेत्प्रवहणं श्रीजैनधर्मानिधं // 1 // अगाधदुः। खावली पंकपूर्णे / निःसारसंसारसरस्यशेषे // अत्यल्पमात्रोपरिमात्रदृशं / नेति दहा विष rekPPAREGupratnasurM.S. . Jun Gun Aaradhak Trust

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